________________
पविरामली: विनिमशालाएँ
प्रश्न-वे कुल कौनसे-कौनसे हैं ?
उत्तर-वे कुल इस प्रकार हैं। (१) ईसिगोत्तिय (ऋषिगुप्तिक), (२) ईसिदत्तिय (ऋषिदत्तिक) (३) और अभिजसंत-ये तीनों कुल माणवक (मानवक) गण के हैं। मल:
थेरेहितो णं सुद्वियसुप्पडिबुद्धहितो कोडियकाकदिएहितो वग्धावच्चसगोत्तेहिंतो एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाई एवमाहिज्जंति । से किं तं साहाओ ? एवमाहिज्जंति, तं जहा
उच्चानागरि विज्जाहरी य, वइरी य मज्झिमिल्ला य । कोडियगणस्स एया, हवं ति चत्तारि साहाओ॥१॥
से किं तं कुलाई ? कुलाई एवमाहिज्जति, तं जहापढमेत्थ बंभलिज्जं, बितियं नामेण वच्छलिजं तु । ततियं पुण वाणिज्ज, चउत्थयं पन्नवाहणयं ॥१॥२१६॥
अर्थ--कोटिक काकंदक कहलाने वाले और वग्धावच्च (व्याघ्रापत्य) गोत्रीय स्थविर सुट्ठिय (सुस्थित) और सुष्पडिबुद्ध (सुप्रतिबुद्ध) से यहाँ कोडियगण४ नामक गण निकला। उनकी चार शाखाएँ और कुल इस प्रकार हैं
प्रश्न-वे शाखाएँ कौनसी कौनसी हैं ?
उत्तर-वे शाखाएँ इस प्रकार हैं--(१) उच्चानागरी ५ (२) विज्जाहरि (विद्याधरी), (३) वईरी, (वाजी) (४) मज्झिमिल्ला (मध्यमा) ।" ये चारों शाखाएं कोटिकगण की हैं।
प्रश्न. वे कुल कौनसे कौनसे हैं ? उत्तर-वे कुल इस प्रकार हैं- प्रथम बंभलिज्ज 'ब्रह्मलीय'"कुल, द्वितीय