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अर्थ-जातिस्मरणज्ञान वाले कौशिकगोत्रीय आर्यसिंहगिरि स्थविर के ये चार स्थविर पुत्र समान सुविख्यात अन्तेवासी थे। जैसे-(१) स्थविर धनगिरि (२) स्थविर आर्यवज्र (३) स्थविर आर्यसमित और (४) स्थविर अरहदत्त (अर्हदत्त)। स्थविर आर्यसमित से यहाँ पर बंभदेवीया 'ब्रह्मदीपिका' शाखा प्रारम्भ हुई।
गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यवज्र से आर्य वज्री शाखा निकली।
विवेचन-आर्य सिहगिरि के जोवन वृत्त के सम्बन्ध में विशेष सामग्री अनुपलब्ध है । यहाँ पर उन्हे कौशिक गोत्रीय बताया है, तथा जातिस्मरण ज्ञान वाला कहा है। इनके चार मुख्य शिष्य थे-आर्य समित, आर्य धनगिरि आर्य वज्रस्वामी और आर्य अर्हद्दत्त ।
आर्य समित का जन्म अवन्ती देश के तुम्बवन ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम धनपाल था, ये जाति से वैश्य थे। इनकी एक बहिन थी जिसका नाम सुनन्दा था। उसका पाणिग्रहण तुम्बवन'०१ के धनगिरि के साथ हुआ था।०२ आर्य समित योगनिष्ठ और उग्र तपस्वी थे। अनुश्रुति है कि आभीर देश के अचलपुर ग्राम में इन्होंने कृष्णा और पूर्णा सरिताओं को योग बल से पार किया, और ब्रह्मद्वीप पहुँचे। ब्रह्मद्वीपस्थ पाँच सौ तापसों को अपने चमत्कार से चमत्कृतकर उन सबको अपने शिष्य बनाये ।
आर्य वज्र स्वामी—आर्य समित की बहिन का विवाह इब्भपुत्र धनगिरि के साथ हुआ था।०३ धनगिरि धर्मपरायण व्यक्ति थे। जब उनके सामने धनपाल की ओर से विवाह का प्रस्ताव आया तब उसने स्पष्ट अस्वीकार करते हुए कहा कि मैं विवाह नहीं करूंगा, संयम लूगा। परन्तु धनपाल ने उनके माथ विवाह कर दिया । विवाह हो जाने पर भी उनका मन संसार में न लगा। अपनी पत्नी को गर्भवती छोड़कर ही उन्होंने आर्य सिंहगिरि के पास दीक्षा ग्रहण को । जब बच्चे का जन्म हुआ तब उसने पिता की दीक्षा की बात सुनी । सुनते ही जातिस्मरण ज्ञान हुआ, माता के मोह को कम करने के लिए वह रात दिन रोने लगा। एक दिन धनगिरि और समित भिक्षा हेतु जा रहे थे, तब आर्य