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स्वविरावली: विधि शाखाए
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इस प्रकार कही गई है । जैसे - तु गियायन गोत्रीय स्थविर आर्य यशोभद्र के दो स्थविर अन्तेवासी थे । एक माठरगोत्र के स्थविर आर्य संभूतविजय और दूसरे प्राचीन गोत्र के स्थविर आर्य भद्रबाहु । माठर गोत्रीय स्थविर आर्य सभूतविजय के गौतम गोत्रीय आर्य स्थूलभद्र नामक अन्तेवासी थे । गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य स्थूलभद्र के दो स्थविर अन्तेवासी थे । प्रथम एलावच्च गोत्रीय (एलावत्स ) स्थविर आर्यमहागिरि, और दूसरे वासिष्ठगोत्रीय स्थविर आर्यसुहस्ती । वासिष्ठगोत्रीय स्थविर आर्यसुहस्ती के दो स्थविर अन्तेवासी थे । प्रथम सुस्थित स्थविर और द्वितीय सुप्पडिबुद्ध ( सुप्रतिबुद्ध) स्थविर । ये दोनों कोडिय - काकंदक" कहलाते थे और ये दोनों वग्धावच्च ( व्याघ्रापत्य) गोत्र के थे । कोडियकाकदक के रूप में प्रसिद्ध हुए और वग्घावच्चगोत्री (व्याघ्रापत्यगोत्री ) सुस्थित और सुप्पडिबुद्ध स्थविर के कौशिक गोत्री आर्य इंद्र दिन्न नामक स्थविर अन्तेवासी थे । कौशिक गोत्रीय आर्य इन्द्रदिन स्थविर के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यदिन नामक अंतेवासी थे । गौतमगोत्रीय स्थविर आर्यंदिन के कौशिक गोत्रीय आर्यंसिंहगिरि नामक स्थविर अन्तेवासी थे । आर्यंसिंहगिरि को जातिस्मरण ज्ञान हुआ था । जातिस्मरण ज्ञान को प्राप्त कौशिकगोत्रीय आर्यसंहगिरि स्थविर के गौतमगोत्रीय आर्य वज्रनामक स्थविर अन्तेवासी थे । गौतमगोत्रीय स्थविर आर्य वज्र के उक्कोसियगोत्री आर्य वज्रसेन नामक स्थविर अन्तेवासी थे । उक्कोसियगोत्री आर्य वज्रसेन स्थविर के चार स्थविर अन्तेवासी थे - ( १ ) स्थविर आर्य नाईल, (२) स्थविर आर्य पोमिल (पद्मिल) (३) स्थविर आर्य जयंत ( ४ ) और स्थविर आर्य तापस । स्थविर आर्य नाईल से आर्य नाईला शाखा निकली । स्थविर आर्य पोमिल (पद्मिल) से आर्य पोमिला (पद्मिला) शाखा निकली । स्थविर आर्य जयंत से आर्य जयंती शाखा निकली। स्थविर आर्य तापस से आर्य तापसी शाखा निकली ।
मूल :
वित्थरवायणाए पुण अज्जजसमद्दाओ परओ थेरावली