________________
स्थविराबलो : प्रार्य स्थलि भत्र
२६१
मल:
थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इम दुवालस थेरा अंतेवासी अहावचा अभिण्णाया होत्था, तं जहा
नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥१॥ थेरे य थूलभदे उज्जमती जंबुनामधेज्जे य । थेरे य दीहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥
थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नताओ होत्था, तं जहा
जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयदिन्ना य । सेणा वेणा रेणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ।१॥२०॥
अर्थ-माढरगोत्रीय स्थविर आर्य संभूतिविजय के पुत्र समान एवं प्रख्यात ये बारह स्थविर अंतेवासी थे। जैसे-(१) नन्दनभद्र, (२) उपनन्दन भद्र, (३) तिष्यभद्र, (४) यशोभद्र, (५) स्थविर सुमनभद्र, (स्वप्नभद्र) (६) मणिभद्र, (७) पुण्यभद्र (पूर्णभद्र), (८) आर्य स्थूलभद्र (९) ऋजुमति, (१०) जम्बू, (११) स्थविर दीर्घभद्र, (१२) स्थविर पाण्डुभद्र। माढर गोत्रीय स्थविर आर्य संभूतविजय की पुत्री समान तथा प्रख्यात ये सात अंतेवासिनियाँ (शिष्याएँ) थीं, जैसे कि-(१) यक्षा, (२) यक्षदत्ता, (३) भूता, (४) भूतदत्ता (५) सेणा,(६) वेणा,(७) और रेणा ये सातों ही आर्य स्थूलभद्र की बहिनें थीं।
विवेचन-आचार्य संभूतविजय माढर गोत्रीय ब्राह्मण विद्वान थे। आर्य यशोभद्र के पास ४२ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की, ४० वर्ष सामान्य साधु अवस्था में रहे और ८ वर्ष युगप्रधान आचार्य पद पर । ६० वर्ष की आयु में वीर सं० १५६ में स्वर्गवासी हुए।
___ आपका शिष्य परिवार बहुत ही विस्तृत था। यहां तो प्रमुख १२ शिष्यों का ही नाम निर्देश किया गया है।