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स्थविरावली : मार्यशम्यंमत्र : मार्य यशोमय
२८५ ___ इन्होंने अठ्ठाईस वर्ष की वय में प्रव्रज्या ग्रहण की। चौंतीस वर्ष साधारण मुनि अवस्था में रहे और तेवीस वर्ष युग प्रधान आचार्य पद पर । वीर सं० ६८ में ८५ वर्ष की आयु पूर्णकर स्वर्गस्थ हुए। - आर्य यशोभद्र
ये आचार्य शय्यंभव के परम मेधावी शिष्य थे। तुगियायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। उनके जीवन वृत्त के सम्बन्ध में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है। पाटलिपुत्र का नन्द-राजवंश और मंत्री-वंश इनके प्रभाव से पूर्ण प्रभावित था। तथा विदेह, मगध और अंग आदि आपके पाद-पद्मों से सदा पावन होते रहे । बावीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की। चौदह वर्ष तक मुनि अवस्था में रहे, और पचास वर्ष युगप्रधान आचार्य पद पर रहे। वीर संवत् १४८ में ८६ वर्ष की आयु पूर्णकर स्वर्गस्थ हुए ।
यहाँ यह स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक है कि स्थविरावली का लेखन एक समय में नही हुआ है, जैसे आगमों को तीन बार व्यवस्थित किया गया था वैसे ही स्थविरावली भी तीन भागों में व्यवस्थित की गई है।
आर्य यशोभद्र तक स्थविरावली की एक परम्परा रही है। उसके पश्चात् दो धाराएँ हो गई, एक संक्षिप्त और दूसरी विस्तृत । आर्य यशोभद्र तक की स्थविरावली भगवान महावीर के निर्वाण से करीब १६० वर्ष पश्चात् पाटलिपुत्र में जो प्रथम वाचना हुई थी उसके पूर्व की है। उसके पश्चात् की संक्षिप्त और विस्तृत दोनों ही स्थविरावलियां, जिनकी परिसमाप्ति क्रमशः आर्य तापस और फगुमित्र तक हुई है। द्वितीय वाचना के समय मूल के साथ सम्मिलित की गई हैं। संक्षिप्त स्थविरावली में मूल परम्परा के स्थविरों का ही मुख्यतः निर्देश किया गया है और विस्तृत स्थविरावली में मूल पट्टधरों के अतिरिक्त उनके गुरुभ्राता और उनसे प्रादुर्भूत होने वाले गण, गणों के कुल और शाखाओं का भी वर्णन किया गया है। आर्य तापस और फग्गुमित्र के पश्चात् स्थविरावली ततीय वाचना के समय पूर्वतन स्थविरावली में संलग्न करदी गई।