________________
भगवान ऋषभदेव : प्रथमराजा
२५६
राज्य के सरक्षणार्थ चार प्रकार की सेना व सेनापतियों का निर्माण साम, दाम, दण्ड और भेद नीति का प्रचलन किया। चार प्रकार की दण्डव्यवस्था - परिभाष, (२) मण्डल वन्ध, (३) चारक, (४) छविच्छेद का निर्माण किया ।
किया ।
६१
परिभाष- कुछ समय के लिए सापराध व्यक्ति को आक्रोश पूर्ण शब्दों के साथ नजरबन्दी आदि का दण्ड देना ।
मण्डल बन्ध-सीमित क्षेत्र में रहने का दण्ड देना । (एक प्रकार की नजर कैद )
arth - बन्दीगृह में बन्द करने का दण्ड देना । ( कारावास ) छविच्छेद- हाथ पैर आदि अगोपाङ्गो के छेदन का दण्ड देना ।
52
ये चार नीतियाँ कब चलीं, इसमें विद्वानों के विभिन्न मत हैं । कुछ विद्वानो का मन्तव्य है कि प्रथम दो नीतियाँ ऋषभ के समय चली और दो भरत के समय । आचार्य अभयदेव के मन्तव्यानुसार ये चारों नीतियाँ भरत के समय मे चली । `४ आचार्य भद्रबाहु " और आचार्य मलयगिरि के अभिमतानुसार बन्ध ( बेडी का प्रयोग ) और घात ( डन्डे का प्रयोग ) ऋषभनाथ के समय प्रारम्भ हो गये थे । मृत्यु दण्ड का आरम्भ भरत समय हुआ । ७
६ ६
६७
खाद्य समस्या का समाधान - ऋषभदेव के पूर्व मानवों का आहार कन्द, मूल, पत्र, पुष्प और फल था । किन्तु जनसंख्या की अभिवृद्धि होने पर कन्द, सुल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने से मानवों ने अन्नादि ( कच्चे ) का उपयोग प्रारम्भ किया । किन्तु पकाने के साधन न होने से कच्चा अन्न दुष्पच होने पर लोग ऋषभदेव के पास पहुँचे और उनसे अपनी समस्या का समाधान मांगा । ऋषभदेव ने हाथ से मलकर खाने की सलाह दी। जब वह भी दुष्पच हो गया तो पानी में भिगोकर और मुट्ठी व बगल मे रखकर गर्म कर खाने की राय दी । उससे भी अजीर्ण की व्याधि समाप्त नही हुई ।
भगवान् श्री ऋषभदेव अग्नि के सम्बन्ध में जानते थे, पर वह काल