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भगवान अषमदेष : परिनिर्वाण
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आयुकर्म, नामकर्म, गोत्रकर्म क्षीण होते ही इस अवसर्पिणी काल के सुषमदुषम नामक आरे का बहुत समय व्यतीत हो जाने और तीन वर्ष और साढे आठ माम अवशेष रहने पर हेमन्तऋतु के तृतीय मास, पांचवे पक्ष, अर्थात् माघ मास का कृष्ण पक्ष आया, उस माघ कृष्णा त्रयोदशी के दिन, अष्टापद पर्वत के शिखर पर श्री ऋषभदेव अर्हत्, दूसरे दस हजार अनगारों के साथ, पानी रहित, चतुर्दश भक्त का तप करते हुए, अभिजित नक्षत्र का योग होते हो, पूर्वाह्न में पल्यंकामन से रहे हुए कालगत हुए, यावन् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए. निर्वाण को प्राप्त हुए।
मल:
___ उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तिनि वासा अद्धनवमा य मासा विइकता, तओ वि परं एगा सागरोवमकोडाकोडी तिवासअद्धनवमासाहिएहिं बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया वीइकता, एयम्मि समए समणे भगवं महावीरे परिनिव्वुडे, तओ वि परं नव वाससया वीइक्कता, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ ॥२०॥
अर्थ -- कोशलिक अर्हत् ऋषभ को निर्वाण हुए, यावत् उनको सर्वदुःखों से मुक्त हुए, तीन वर्ष साढ़े आठ मास व्यतीत हो गये, उसके पश्चात् बयालीस हजार तीन वर्ष और साढे आठ मास कम एक कोटाकोटि सागरोपम जितना समय व्यतीत हुआ। उस समय श्रमण भगवान महावीर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। उसके पश्चात् भी नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गये और अब दशवी शताब्दी का यह अस्सोवा वर्ष चल रहा है।"