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स्यविरावली : गणपर चरित्र पांचसौ छात्र इनके पाम अध्ययन करते थे। पचास वर्ष की अवस्था में शिष्यों के साथ प्रव्रज्या ली। बयालीस वर्ष पर्यन्त छद्मस्थावस्था में रहे।३१ महावीर के निर्वाण के बाद बारह वर्ष व्यतीत होने पर केवली हुए और आठ वर्ष तक केवली अवस्था में रहे।
श्रमण भगवान के सर्व गणधरों में सुधर्मा दीर्घजीवी थे, अत: अन्यान्य गणधरों ने अपने अपने निर्वाण के समय अपने गण सुधर्मा को अर्पित कर दिए थे।
महावीर-निर्वाण के १२ वर्ष बाद सुधर्मा को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और बीस वर्ष के पश्चात् सौ वर्ष की अवस्था मे मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया । ३२
(६) माण्डिक_माण्डिक मौर्य संनिवेश के रहने वाले वासिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे।33 इनके पिता धनदेव३४ और माता विजयदेवा थी।३५ इन्होंने तीन मौ पचास छात्रो के साथ पन (५३) वर्ष की अवस्था में प्रव्रज्या ली। मड़सठ (६७) वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया, और तिरासी वर्ष को अवस्था में गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए।३८ ।
(७) मौर्यपुत्र-ये काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य' और माता का नाम विजयदेवा था। १ मौर्यमन्निवेश के निवासी थे। तीन सौ पचास छात्रों के साथ वेपन वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली। उनामी वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया, और भगवान् के अन्तिम वर्ष मे तिरासो (८३) वर्ष ५ को अवस्था में मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।
(E) अकम्पित -ये मिथिला के रहने वाले गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे।७ इनके पिता देव और माता जयन्ती थी। तीन सौ छात्रों के साथ अड़तालीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली। सत्तावन वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष में अठहत्तर वर्ष को" अवस्था में राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।