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कल्प सूत्र
कि घर में जितना भी पानी है वह पी गया है, तथापि प्यास शान्त नहीं हुई। कुए पर गया, और वहाँ का भी सारा पानी पी गया, पर प्यास न बुझी । नदी, नाले, और द्रहों का पानी पीता हुआ समुद्र पर पहुँचा, सारा पानी पी लेने पर भी उसकी प्यास कम नहीं हुई। प्यास से छटपटाता हुआ वह समुद्र के किनारे भीने हुए तिनकों को निचोड़कर प्यास बुझाने का प्रयास कर रहा था कि नींद खुल गई।"
रूपक का उपसंहार करते हुए भगवान के कहा—क्या पुत्रो ! उन भीगे हुए तिनकों से उसकी प्यास शान्त हो सकती है, जबकि कुए और समुद्र के पानी से नही हुई ?
पुत्रों ने कहा-नहीं भगवन् !
भगवान् ने अपने अभिमत की ओर पुत्रों को आकृष्ट करते हुए कहाभौतिक राज्यश्री से तृष्णा को शान्त करने का प्रयास भी भीगे हुए तिनकों को निचोड़ने के समान है। स्वर्गीय सुखों से भी जब तृष्णा शान्त नही हुई, तो इस तुच्छ और अल्पकालिक राज्य से शान्त होना कैसे सम्भव है ? अतः सम्बोधि प्राप्त करो। वस्तुतः भौतिक राज्य से आध्यात्मिक राज्य महान् है, सासारिक सुखों से आध्यात्मिक सुख उत्तम है। इसे ग्रहण करो, इनमें न कायरता को आवश्यकता है और न युद्ध का ही प्रसंग है। जब तक स्वराज्य नहीं मिलता तब तक पर-स्वराज्य की कामना रहती है। स्वराज्य मिलने पर परस्वराज्य का मोह नहीं रहता। भगवान् के उपदेश से प्रभावित हो अठ्ठानवें ही भ्राताओं ने राज्य त्यागकर संयम ग्रहण कर लिया। भरत को यह सूचना प्राप्त होते ही वह दौड़े-दौड़े आए।' भ्रातृ-प्रेम से उनकी आँखें गीली हो गई। पर उनकी गीली आँखें अठानवें भ्राताओं को पथ से विचलित नहीं कर सकी। भरत निराश होकर पुनः अपने घर लौट गए।
भ्रातृ-युद्ध-सम्राट भरत एक शासन सूत्र में समग्र भारतवर्ष को पिरोना चाहते थे । अत: अपने लघुभ्राता बाहुबली को यह सन्देश पहुँचाया कि वह चक्रवर्ती की अधीनता स्वीकार कर ले। भरत का यह सन्देश सुनते ही बाहुबली की