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कल्प सूत्र परमसुईभूया तं मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं नायए य खत्तिए य विउलेणं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्माणेति सकारिता सम्माणित्ता तस्सेव मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणस्स नायाण य खत्तियाण य पुरओ एवं वयासी ॥१०२॥ . अर्थ-भोजन करने के पश्चात् विशुद्ध जल से कुल्ले करते है, दात और मुख को स्वच्छ करते है। इस प्रकार परम विशुद्ध स्वच्छ बने हुए, माता-पिता, आए हुए उन मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजनो, परिजनो और ज्ञातृवंश के क्षत्रियो को बहुत से पुष्प, वस्त्र, सुगंधित मालाए और आभूषण प्रदान कर उनका स्वागत करते है । सत्कार और सम्मान करते है। सत्कार और सम्मान करके इन मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजनो, परिजनो और ज्ञातृवंशीय क्षत्रियो के ममक्ष भगवान के माता-पिता इस प्रकार बोले -- मूल :
पुचि पि य णं देवाणुप्पिया ! अम्हं एयंसि दारगंमि गम्भं वक्तंसि समाणं सि इमेयारूवे अब्भत्थिए चिंतिए जाव समुप्पज्जित्था-जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते तप्पभिई च णं अम्हे हिरन्नणं वड्ढामो सुवनणं धणेणं धन्नणं जाव सावएज्जेणं पीइसकारेणं अईव अईव अभिवड्ढामो सामंतरायाणो वसमागया य तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्म एयाणुरूवं गोन्न गुणनिप्फन्न नामधिज्जं करिस्सामो वद्धमाणु ति, तं होउ णं कुमारे वद्धमाणे वद्धमाणे नामेणं ॥१०३॥
अर्थ-हे देवानुप्रियो ! जब यह पुत्र गर्भ में आया तब (उस समय) हमारे मन में इस प्रकार का विचार चिन्तन यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि