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मर्हत् अरिष्टनेमि जन्म पराक्रम दर्शन
उनके जीवन के पाँच प्रसंगो मे चित्रा नक्षत्र आया था । जैसे- अर्हत् अरिष्टनेमि चित्रा नक्षत्र मे स्वर्ग से च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में आये, इत्यादि सम्पूर्णवृत्त चित्रा नक्षत्र के पाठ के साथ पूर्व के समान समझना चाहिए। यावत् चित्रा नक्षत्र में वे परिनिर्वाण को प्राप्त हुए ।
• जन्म
मूल :
२२७
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहुले तस्स णं कत्तियबहुलस्स बारसीपक्खेणं अपराजियाओ महाविमाणाओ बत्तीसं सागरोवमद्वितीयाओ अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारदेवासे सोरियपुरे नगरे समुद्दविजयस्स रन्नो भारियाए सिवाए देवीए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव चित्ताहिं गन्मत्ताए वक्क ते सव्वं तव सुमिणदंसणदविणसंहरणाइयं एत्थ भणियव्वं ॥ १६२ ॥
अर्थ--उस काल उस समय अर्हत् अरिष्ट नेमि, जब वर्षा ऋतु का चतुर्थ माम, मातवाँ पक्ष अर्थात् कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का समय आया, तब कार्तिक कृष्णा द्वादशी के दिन, बत्तीस सागरोपम की आयुष्य मर्यादा वाले अपराजित नामक महाविमान से च्यवकर इसी जम्बूद्वीप में भारतवर्ष के सोरियपुर नामक नगर में समुद्रविजय राजा की पत्नी शिवादेवी की कुक्षि में, रात्रि के पूर्व और अपर भाग की सन्धि-वेला मे, अर्थात् मध्यरात्रि में चित्रा नक्षत्र का योग होने पर गर्भ रूप में उत्पन्न हुए। उसके पश्चात् का सभी वर्णन भगवान् महावीर के प्रकरण मे आये हुए स्वप्न दर्शन, धन-धान्य की वृद्धि इत्यादि के समान यहाँ पर भी कहना चाहिए ।
मूल :
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरिहा अरिट्ठनेमी जे से