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२३८ करने वालों की भूमिका दो प्रकार की थी। जैसे-युग अन्तकृत्भूमि और पर्याय अंतकृतभूमि । यावत् अर्हत् अरिष्टनेमि के पीछे आठवें युगपुरुष तक निर्वाण का मार्ग चलता रहा, वह उनकी युग-अंतकृत् भूमि थी। अर्हत् अरिष्टनेमि को केवलज्ञान होने के दो वर्ष पश्चात् किसी श्रमण ने सर्व दुःखों का अन्त कर निर्वाण प्राप्त किया, अर्थात् भगवान को केवलज्ञान होने के पश्चात् दो वर्ष के बाद निर्वाण मार्ग प्रारम्भ हुआ। --.परिनिर्वाण
तेणं कालेणं तेणं समएणं अरिहा अस्टिनेमी तिन्नि वाससयाई कुमारवासमझे वसित्ता, चउप्पन्नं राइंदियाई छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, देसूणाई सत्त वाममयाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, पडिपुन्नाई सत्त वाससयाई सामन्नपरियागं पाउणित्ता, एगं वाससहस्स सबाउयं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए ममाए बहुवीइक्कंताए जे मे गिम्हाणं चउत्थे मासे अटमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्म अठटमीपखणं उप्पि उज्जितसेलसिहरंसि पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि नेसज्जिए कालगए जाव सब्बदुक्खप्पहीणे ॥१६॥
अर्थ-उस काल उस समय अर्हन अरिष्टनेमि तीन सौ वर्ष तक कुमार अवस्था मे रहे । चोपन रात्रि दिन छद्मस्थ पर्याय में रहे। कुछ कम सात सौ वर्ष तक केवलज्ञानी अवस्था मे रहे। यों पूर्ण सात सौ वर्ष तक श्रमण पर्याय को पालन करके, और कुल एक हजार वर्ष का आयुष्य भोग करके, वेदनीय कर्म, आयुष्य कर्म, नाम कर्म, और गोत्र कर्म इन चारों अघाती कर्मों को पूर्णतया क्षोण करके, दुःषमा-सुषमा नामक अवसर्पिणी काल के बहुत व्यतीत हो