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महत् मरिष्टनेमि : परिनिर्वाण
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जाने पर, जब ग्रोष्मऋतु के चतुर्थमास का आठवां पक्ष, अर्थात् आषाढ़ मास का शुक्ल पक्ष आया, तब आषाढ़ शुक्ला अष्टमी के दिन उज्जित [उज्जयंत] शैल शिखर पर दूसरे पांच सौ छत्तीस अनगारों के साथ उन्होंने निर्जल मासिक तप किया। उस समय चित्रा नक्षत्र का योग आने पर रात्रि के पूर्व और अपर भाग की सन्धिवेला मे, अर्थात् मध्यरात्रि को निषद्या में रहे हुए, [बैठे बैठे] अर्हत्-अरिष्टनेमि कालगत हुए । यावत् सभी दुखों से पूर्णतया मुक्त हुए ।
मल:
__ अरहओ णं अरिठटनेमिस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खपहीणस्स चउरासीइ वाससहस्साई विइक्कंताई, पंचासीइमस्स य वामसहस्सस्स नव वाससयाई विइक्कताइ, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥१६॥
अर्थ-अर्हत अरिष्टनेमि को कालगत हुए, यावत् सर्व दुःखों से पूर्णतया मुक्त हुए, चौरासी हजार वर्ष व्यतीत हो गये । और उस पर पचासीवें हजार वर्ष के नौ सौ वर्ष भी व्यतीत हो गये। उस पर दशवीं शताब्दी का यह अस्सीवें वर्ष का समय चल रहा है । अर्थात् अर्हत् अरिष्टनेमि को कालगत हुए चौरासी हजार नौ सौ अस्सी वर्ष व्यतीत हो गए।
- अर्हत्नमि से अहंद अजित मल :
नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव पहीणस्स पंच वाससयसहस्साह चउरासीइंच वाससहस्साइं नव य वाससयाई विहक्कंताइ, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छह ॥१७॥