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महन् मरिष्टनेमि : राल को मंगनी
२२ शंख बजाये जाने की बात जानकर चकित हुए। फिर भी शक्ति परीक्षण के लिए श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि से कहा-चलिए व्यायामशाला में जहाँ अपने बाहुबल की परीक्षा करें। क्योंकि पांचजन्य शंख को फूकने की शक्ति मेरे अतिरिक्त अन्य किसी में नहीं है।।
अरिष्टनेमि ने स्वीकृति दी, दोनों ही व्यायामशाला में पहुंचे । कृष्ण ने भुजा लम्बी की और कहा-जरा इसे झुका तो दो। अरिष्टनेमि ने उस भुजा को ऐसे झुका दिया जैसे वृक्ष की डाली को झुका दिया हो। जब अरिष्टनेमि ने भुजा लम्बी की तो कृष्ण, अत्यधिक प्रयत्न करने पर भी उसे नहीं झुका सके', यह घटना-चित्र उनके महान् धैर्य, शौर्य और प्रबल पराक्रम के भाव को उजागर कर रहा है।
श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि के अतुल बल को देखकर चकित हो गये, साथ ही चिन्तामग्न भी। तभी आकाशवाणी हुई कि अरिष्टनेमि कुमारावस्था में ही प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे। --. राजुल की मंगनी
श्रीकृष्ण ने कुमार नेमिनाथ को विवाह के लिए प्रेम पूर्वक आग्रह किया, पर वे स्वीकार नही हुए। वे चाहते थे कि नेमिकुमार विवाहित हो जाये तो इनका अतुलनीय पराक्रम क्षीण हो जायेगा और फिर मुझे कभी भी इससे भय व शंका नही होगी। इसके लिए सत्यभामा आदि को श्रीकृष्ण ने संकेत किया। श्रीकृष्ण के सकेतानुसार सत्यभामा आदि रानियों ने वसत ऋतु मे रैवताचल पर वसंत कीड़ा करते हुए हाव-भाव-कटाक्षादि के द्वारा नेमिकुमार के अन्तर्हृदय में वासना जागृत करने का प्रयास किया, किन्तु सफल न हो सकी। तब रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, पद्मावती, गांधारी, लक्ष्मणा आदि ने स्त्री के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा-स्त्री के बिना मानव अपूर्ण है, स्त्री अमृत है, नारी ही नारायणी है, आदि । अपनी भाभियों के मोह भरे वचनों को सुनकर नेमिकुमार मौन रहे और उनकी अज्ञता पर मन ही मन मुस्कराने लगे। कुमार को मौन देखकर, 'अनिषिद्धम् अनुमतम्' के अनुसार सभी रानियां आनन्द से नाच उठी और सर्वत्र समाचार प्रसारित कर दिया कि अरिष्टनेमि विवाह के लिए प्रस्तुत हो गए हैं।