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पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वनाथ : पूर्व नव
२१५ तथापि हाथी ने समभाव पूर्वक पीड़ा सहन को, समभाव में ही आयु पूर्ण किया।
(३) आठवें देवलोक में-आयु पूर्णकर मरुभूति का जीव आठवें सहस्रार देवलोक में उत्पन्न हुआ।
(४) किरण वेग-वहाँ से आयु पूर्ण होने पर मरुभूति का जीव जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विद्युतगति विद्याधर राजा के वहाँ कनकवती रानी का पुत्र 'कि रणवेग' हुआ । यौवनावस्था में अपनी पत्नियों के साथ आमोद-प्रमोद कर रहा था कि-संध्या की लालिमा देखकर वैराग्य जागृत हुआ। दीक्षा ग्रहण की, मुनि बने । एक बार पुष्करवरद्वीप के वैताढ्य गिरि के हिम शैल पर्वत पर ध्यानारूढ़ थे । उस समय कमठ के जीव ने जो कुर्कट सर्प का आयुपूर्ण होने पर पाँचवे नरक में गया था और वहां से निकल कर वह पुनः सर्प बना था, ध्याना रूढ मुनि को देखा तो पूर्व वैर-वश क्रुद्ध होकर मुनि को इंसा, मुनि ने समभाव से आयुपूर्ण किया।
(५) अच्युत कल्प में- वहाँ से मुनि बारहवें अच्युत कल्प नामक देवलोक में देव बने ।
(६) वज्रनाभ-बारहवें देवलोक से च्यवकर जम्बूद्वीप के पश्चिम महा विदेह में शुभंकरा नगरी के अधिपति वज्रवीर्य राजा की रानी लक्ष्मीवती का पुत्र वज्रनाभ हुआ। राज्यश्री का उपभोग करते हुए, क्षेमंकर तीर्थकर का उपदेश सुनकर प्रव्रज्या ग्रहण की। एक बार सुकच्छ विजय के मध्यवर्ती ज्वलंत पर्वत पर कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित थे। उधर कमठ का जीव, जो सर्प था वह वहाँ से मर कर पाँचवे नरक में गया था। नरक से निकलकर अनेक भवों में परिभ्रमण करता हुआ इस प्रदेश में कुरंगक नाम का भील बना । मुनि को देखकर पूर्व वैर उबुद्ध हुआ। वाण मारा, आहत होकर मुनि गिर पड़े तथा समभाव से आयु पूर्ण किया ।
(७) मध्यम ग्रंवेयक-मुनि वहाँ से मध्यम ग्रंवेयक में देव बने। और कमठ का जीव भील, वहाँ से मरकर सातवें नरक में गया ।