________________
२१४
কৰ মুখ
कमठ की पत्नी से उनका वह असद् व्यवहार छिप न सका। उसने पति को समझाया, पर वह नहीं माना, तब उसने मरुभूति से कहा । मरुभूति घर से निकल गया और कुछ दिनों के पश्चात् रूप परिवर्तन कर पुनः वहाँ आया। पत्नी और भ्राता के असद् व्यवहार को स्वयं के नेत्रों से निहारकर उसने राजा से निवेदन किया। राजा ने क्रुद्ध होकर कमठ को देश से निष्काषित कर दिया। कम तापस बनकर पोतनपुर के सन्निकट पर्वत पर उग्रतप करने लगा। तप का चमत्करी प्रभाव हुआ, जन-जन की जिह्वा पर कमठ का नाम चमकने लगा । मरुभूति ने भी उसकी प्रशसा सुनी। अपने कृत्य पर उसे पश्चात्ताप होने लगा। ज्येष्ठ भ्राता से क्षमायाचना करने के लिए वह वहां पहुँचा । चरणों में झुका, परन्तु क र कमठ ने नमन करते हुए मरुभूति के शिर पर बड़ा-सा पत्थर दे मारा, भयंकर वेदना से विकल मरुभूति का वही पर अन्त हो गया।
(२) यूथपतिगज_आर्तध्यानवश आयुपूर्ण करने से मरुभूति का जीव विन्ध्याचल की अटवी में हाथियों के यूथ का स्वामी गजराज हुआ। कमठ की पत्नी वरुणा वहाँ से काल प्राप्त कर यूथपति गजराज की प्रिया हस्तिनी
हुई।
इधर राजा ने जब कमठ के द्वारा मरुभूति की हत्या के समाचार सुने तो राजा को भी संसार की स्वार्थपरायणता एव विषयान्धता से विरक्ति हुई । संयम ग्रहण किया। उत्कृष्ट साधना करते हुए वे एकदा उसी अटवी में ध्यान मुद्रा में खड़े थे कि मरुभूति का जीव, जो हाथी बना था, उधर आ निकला। मुनिको ध्यानमुद्रा में निहार कर उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। पूर्व जन्म का स्मरण करके गजराज ने मुनि से श्रावक धर्म स्वीकार किया।
एक बार वन में भयंकर अग्नि प्रकोप हुआ। सारा वन जलने लगा, तब अपने प्राण बचाने के लिए हाथी ने सरोवर में प्रवेश किया। इधर कमठ का जीव जो कुकुट जाति का सर्प बना था, वह आकाश में उडता हुआ वहाँ आया और हाथी को देखकर उसका वैर उबुद्ध हो गया। क्रोधवश हाथी के सिर पर दंश मारा, जिसके जहर से गजराज का सारा शरीर विषग्रस्त हो गया