________________
साधना काल : कामों में शलाका
१८३
प्रभु ने समाधान दिया- "जो मै' शब्द का वाच्यार्थ है । वही आत्मा है । " स्वातिदन ने पुन जिज्ञासा की - आत्मा का स्वरूप और लक्षण क्या है ? प्रभु ने समाधान दिया- 'वह अत्यन्त सूक्ष्म और रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि से रहित है, तथा चेतना गुण से युक्त है ।'
प्रश्न उत्पन्न हुआ - "सूक्ष्म क्या है ?"
उत्तर दिया- "जो इन्द्रियों से जाना पहचाना न जाय ।"
पुन: जिज्ञासा प्रस्तुत हुई कि क्या आत्मा को शब्द, रुप, गंध और पवन के सदृश सूक्ष्म समझा जाय । प्रभु ने स्पष्टीकरण किया “नही, ये इन्द्रिय-ग्राह्य हैं । श्रोत्र के द्वारा शब्द, नेत्र के द्वारा रूप, घ्राण के द्वारा गंध और स्पर्श के द्वारा पवन ग्राह्य हैं, पर जो इन्द्रिय ग्राह्य नहीं हो वह सूक्ष्म है ।"
प्रश्न- क्या ज्ञान का नाम ही आत्मा है
?
उत्तर- ज्ञान आत्मा का असाधारण गुण है, ज्ञान का आधार आत्मा - ज्ञानी है |
इस प्रकार की जिज्ञासाओ के समाधान से उसका मन अत्यधिक आह्लादित था । ३१४
• कानों में शलाका
वर्षावास पूर्ण होने पर भगवान् जभिय ग्राम 'मिढिय ग्राम' होते हुए 'छम्माणि' पधारे और गाँव के बाहर ध्यान मुद्रा मे अवस्थित हुए । सान्ध्यवेला मे एक ग्वाला बैलों को लेकर वहाँ आया। बैलों को महावीर के पास रखकर वह गाँव में कार्य हेतु गया। बैल चरते चरते आसपास की झाड़ियों में छिप गए । ग्वाला लौटकर आया, बैल दिखाई नही दिए तो महावीर से पूछा भगवान् मौन थे । क्रुद्ध होकर उसने भगवान् महावीर के कानों में काँसे की तीक्ष्ण शलाकाएँ डाल दीं और उन शलाकाओं को कोई न देखले अत. उनका बाह्य भाग छेद दिया । भगवान् को अत्यधिक वेदना हो रही थी तथापि वे शान्त एवं प्रसन्न थे। उनके अन्तर्मानस में किञ्चित् भी खिन्नता नहीं थी ।