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परिनिर्वाण
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पर) पद्मासन से बैठे हुए भगवान कल्याणफल-विपाक के पचपन अध्ययन, और पाप-फल विपाक के दूसरे पचपन अध्ययन, और अपृष्ठ अर्थात् किसी के द्वारा प्रश्न न किये जाने पर भी, उनके समाधान करने वाले छत्तीस अध्ययनों को कहते-कहते कालधर्म को प्राप्त हुए, संसार को त्यागकर चले गये, उर्ध्वगति को प्राप्त हुए । उनके जन्म, जरा, मरण के बंधन विच्छिन्न हो गये । वे सिद्ध हुए बुद्ध हुए, मुक्त हुए, सम्पूर्ण कर्मों का उन्होंने नाश किया, सभी प्रकार के संतापों से मुक्त हुए, उनके सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो गये। मल:
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाई विइक्कंताई,दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ । वायणंतरे पुण-अयं तेणउए संवच्छरकाले गच्छइ इति दीसइ ॥१४७॥
अर्थ-जिनके सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो गये है ऐसे सिद्ध बुद्ध यावत् श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण होने को आज नौ सौ वर्ष व्यतीत हो गये है। उसके उपरांत यह हजारवे वर्ष का अस्सीवां वर्ष का समय चल रहा है अर्थात् भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुए आज नौ सौ अस्सी (६८०) वर्ष व्यतीत हो गये। दूसरी वाचना मे कितने ही ऐसा भी कहते है-नौ सौ वर्ष उपरान्त हजारवे वर्ष के तेरानवे (६३) वर्ष का काल चल रहा है, ऐसा पाठ दृष्टिगोचर होता है, अर्थात् उनके मत से भगवान महावीर को निर्वाण के नौ सौ तेरानवे (६६३) वर्ष हुए है।