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मगवान को शिष्य-संपदा
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श्रमण भगवान महावीर के भविष्य गति में कल्याण प्राप्त करने वाले, वर्तमान स्थिति में कल्याण अनुभव करने वाले, और भविष्य में भद्र प्राप्त करने वाले ऐसे आठ-आठ सौ अनुत्तरोपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। अर्थात् ऐसे आठ सौ श्रमण थे जो अनुत्तर विमानो में उत्पन्न होने वाले थे ॥१४४॥
मल:
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा-जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य । जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, चउवासपरियाए अंतमकासी ॥१४॥
___ अर्थ-श्रमण भगवान् महावीर के समय में मोक्ष प्राप्त करने वाले साधकों की दो प्रकार को भूमिका थी,-युगान्तकृत् भूमिका और पर्यायान्तकृत् भूमिका । युगान्तकृत् भमिका-अर्थात् जो साधक अनुक्रम से मुक्ति प्राप्त करें, जैसे प्रथम गुरु मुक्ति प्राप्त करे, उसके पश्चात् उसका शिष्य मुक्ति प्राप्त करें और उसके पश्चात् उसका प्रशिष्य मुक्ति प्राप्त करें। इस प्रकार जो अनुक्रम से मुक्ति प्राप्त की जाती है वह युगान्तकृत् भूमिका कहलाती है।
पर्यायान्तकृत् भूमिका-अर्थात् भगवान् को केवलज्ञान होने के पश्चात् जो साधक मुक्ति प्राप्त करे, उनकी वह मोक्ष सम्बन्धी पर्यायान्तकृत् भूमिका कहलाती है।३६७
भगवान् से तीसरे पुरुष तक युगान्तकृत् भूमिका थी। अर्थात् प्रथम भगवान् मोक्ष गए, उनके पश्चात् उनके शिष्य मोक्ष गये, और उनके पश्चात् उनके प्रशिष्य जम्बूस्वामी मोक्ष गए । यह युगान्तकृत् भूमिका जम्बूस्वामी तक चली, और उसके पश्चात् बंद हो गई । भगवान् को केवलज्ञान होने के चार वर्ष के बाद उनके शिष्यों का मुक्ति गमन प्रारम्भ हुआ और वह जम्बूस्वामी तक चलता रहा।