________________
२०८
कल्प सूत्र अंतेवासिसयाई सिद्धाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई, चउद्दस अज्जियासयाई सिद्धाई ॥१४३॥ समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयाणं संपया होत्था।१४४॥
____ अर्थ-उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर के इन्द्रभूति आदि चौदह हजार श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा थी ।।१३३॥श्रमण भगवान् महावीर की आर्याचन्दना आदि छत्तीस हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट श्रमणी सम्पदा थी ॥१३४॥ श्रमण भगवान महावीर के शंख शतक आदि एक लाख उनसठ हजार श्रावकों की उत्कृष्ट श्रमणोपासक-सम्पदा थी ॥१३५।। श्रमण भगवान् महावीर की सुलसा रेवती आदि तीन लाख अठारह हजार श्रमणोपासिकाओं की उत्कृष्ट श्राविका सम्पदा थी, ॥१३६॥ श्रमण भगवान् महावीर की जिन नही तथापि जिन के समान, सर्वाक्षर सन्निपाती, 'जिन के समान सत्य-तथ्य का स्पष्टीकरण करने वाले, तीन सौ चतुर्दश पूर्वधरों की उत्कृष्ट सम्पदा थी ।।१३७॥ श्रमण भगवान् महावीर के विशेष प्रकार को लब्धिवाले तेरहसो अवधिज्ञानियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी ॥१३८॥ श्रमण भगवान् महावीर की सम्पूर्ण उत्तम केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त ऐसे सात सौ केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी ।।१३।। श्रमण भगवान महावीर की देव नही, किन्तु देवों की ऋद्धि को प्राप्त ऐसे सात सौ वैनियलब्धि वाले श्रमणों की उत्कृष्ट सम्पदा थी॥१४॥ श्रमण भगवान् महावीर की अढ़ाई द्वीप में, और दो समुद्रों में रहने वाले, मन वाले, पर्याप्त पंचेन्द्रिय प्राणियों के मन के भावों को जानने वाले, पांच सौ विपुलमति मन पर्यवज्ञानी श्रमणों की उत्कृष्ट सम्पदा थी ॥१४१॥ श्रमण भगवान महावीर की देव, मानव और असुरों वाली सभाओं में वाद करते हुए, पराजित न होवें, ऐसे चारसी वादियों की अर्थात् शास्त्रार्थ करने वालों की उत्कृष्ट सम्पदा थी।।१४२॥ श्रमण भगवान् महावीर के सात सौ शिष्य सिद्ध हुए, यावत् उनके संपूर्ण दुःख नष्ट हो गये । निर्वाण को प्राप्त हुए और श्रमण भगवान् महावीर की चौदह सौ शिष्याएँ सिद्ध हुई । निर्वाण को प्राप्त हुई ॥१४३॥