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१८२ मृगावती से निवेदन किया और मृगावती ने मम्राट् शतानीक से 13: सम्राट और सुगुप्त नामक अमात्य ने अत्यधिक प्रयास किया, तब राजा ने प्रजा को भो नियमोपनियम का परिचय कराकर प्रभु का अभिग्रह पूर्ण करने की सूचना दी, परन्तु भगवान् का अभिग्रह पूर्ण नहीं हुआ। पांच मास और पच्चीस दिन व्यतीत हो जाने पर भी उनको मुख मुद्रा उसी प्रकार तेजोदीप्त थी।
एक दिन अपने नियमानुसार कौशाम्बी में परिभ्रमण करते हुए भगवान् धन्नाश्रेष्ठी के द्वार पर पहुँचे । राजकुमारी चन्दना सूप में उड़द के बाकुले लिए हए तीन दिन की भूखी-प्यासी द्वार के बीच वहीं पिता के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी। दूर से ही भगवान् महावीर को आते देखकर उसका मन-मयूर नाच उठा। हृदय कमल खिल उठा । हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ झनझना उठी। वह अपलक दृष्टि मे प्रभु को निहार रही थी कि भगवान् आए और जैसे कुछ देखकर बिना कुछ लिए हो लौटने लगे। यह देख उसकी आँखें छलछला आई। गला रुध गया, हृदय भर गया। अवरुद्ध कंठ से ही उसने पुकारा"प्रभो ! इस अभागिनी से क्या अपराध हो गया है ?" बिना कुछ लिए यों ही लोटे गए ? आँखों से आँसू ढुलकते हुए देखकर भगवान् पुनः लौटे और चन्दना के आगे करपात्र फैला दिया। चन्दना ने भक्ति भावना से गद्गद् होकर उड़द के बाकुले प्रदान किये। भीष्म प्रतिज्ञा पूर्ण हुई । १२ आकाश मे देवदुन्दुभि बजी, पंचदिव्य प्रगट हुए, चन्दना का रूप सौन्दर्य पहले से सौ गुना चमक उठा।
भगवान् श्री महावीर वहाँ से प्रस्थान कर सुमगल, सुच्छेत्ता, पालक, प्रभृति क्षेत्रों को पावन करते हुए चम्पानगरी पधारे और चातुर्मासिक तप मे आत्मा को भावित करते हुए स्वातिदत्त ब्राह्मण की यज्ञशाला में बारहवाँ वर्षावास व्यतीत किया।३११
__भगवान् के तपःपूत जीवन मे प्रभावित होकर पूर्णभद्र और माणिभद्र नाम के दो यक्ष सेवा करने के लिए आते । जिसे निहार कर स्वातिदत्त को भी यह दृढ़ विश्वास हो गया कि यह देवार्य अवश्य ही कोई विशिष्ट ज्ञानी है। उसने भगवान् श्री महावीर से जिज्ञामा की-आत्मा क्या है ?