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तीर्थकर काल : प्रथम देशना : गणपर बोला
-. आर्य व्यक्त
उसके पश्चात् आर्य व्यक्त आये। 'स्वप्नोपमं ये सकलमित्येष ब्रह्मविधिरञ्जसा विज्ञयः' इत्यादि श्रुतिवाक्यों से वे ब्रह्मवाद की ओर झुके हुए थे। किन्तु 'खावापृथिवी' तथा 'पृथिवीदेवता, आपो देवता' इत्यादि वचनों से दृश्य जगत् को भी मिथ्या नहीं मान सकते थे। इस द्विविध वेदवाणी से वे भी शंकाशील थे। भगवान् महावीर ने उनकी प्रच्छन्न शंका का वेदपदों के समन्वय पूर्वक द्वैत की सिद्धि कर समाधान किया। समाधान होते ही वे भी छात्रगण महित प्रवजित हुए। ----. सुधर्मा
उसके पश्चात् सुधर्मा आये । 'पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते पशवः पशुत्त्वम् २७ आदि श्रुति वचनों से सुधर्मा की विचारधारा जन्मान्तरसादृश्यवाद की ओर थी, किन्तु "शृगालो वै एष जायते यः सपुरीषो दह्यते" आदि वाक्यों से वे जन्मान्तर के वैसादृश्य का खण्डन नही कर सकते थे। इन विविध वेद वचनों से वे शंका-ग्रस्त थे। भगवान् महावीर ने प्रस्तुत वेदवाक्यों का सुन्दर समन्वय कर सुधर्मा की शंकाओं का निराकरण किया। समाधान होते ही वे भी प्रवजित
--. मण्डित
उसके पश्चात् मण्डित शास्त्रार्थ के लिए आये। वे सांख्यदर्शन के समर्थक थे । “स एष विगुणो विभुर्न बध्यते संसरति वा न मुच्यते मोचयति वा न वा एष बाह्यमभ्यंतर वा वेद" आदि श्रुतिवाक्य उनके मन्तव्य की पुष्टि के लिए थे। परन्तु इसके विपरीत 'न ह वै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति अशरीरं वा वसन्तं प्रियाऽप्रिये न स्पृशतः ३२. इस श्रुतिवाक्य से वे बन्ध और मोक्ष के अस्तित्त्व के सम्बन्ध में भी विचार करने लगते थे। किसी निश्चय पर नहीं पहुँच पा रहे थे। भगवान ने वेद वाक्यों का समन्वय कर आत्मा का संसारित्व सिद्ध किया। समाधान होने पर साढ़े तीन सौ छात्रों के साथ प्रव्रज्या ली। -----. मौर्यपुत्र
उसके पश्चात् मौर्यपुत्र आये । "को जानाति मायोपमान गीर्वाणानिन्द्र