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२०४ प्रतिवर्ष इस दिन दीप जलाकर प्रकाश करेंगे।' उस दिन दीप जलाकर प्रकाश करने से दीपावली पर्व प्रारम्भ हुआ। ३६०
भगवान के निर्वाण का दुःखद वृत्तान्त सुनकर भगवान के ज्येष्ठ म्राता महाराज नन्दिवर्धन शोक-विह्वल हो गए। उनके नेत्रों से आंसुओं की वेगवती धारा प्रवाहित होने लगी। मन खिन्न हो गया । बहिन सुदर्शना ने उनको अपने यहां पर बुलवाया और सान्त्वना दी। तभी से भैयादूज के रूप में यह पर्व स्मरण किया जाता है।'
-. भस्मग्रह : शक्र को प्रार्थना मल:
जं रयणिं च णं समणे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणि च चणं खुदाए भासरासीमहग्गहे दोवाससहस्सटिठई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकंते ॥१२८॥
अर्थ-जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए, यावत् उनके सम्पूर्ण दु:ख नष्ट हो गये, उस रात्रि मे भगवान महावीर के जन्म नक्षत्र पर क्षुद्र कर स्वभाव का दो हजार वर्ष तक रहने वाला भस्मराशि नामक महाग्रह आया था। मूल :
___ जप्पभिई च णं से खुड्डाए भासरासी महग्गहे दो वाससहस्सटिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकंते तप्पभिई च णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो उदिए उदिए पूयासकारे पवत्तति ॥१२॥
अर्थ-जब से क्षुद्र क्रूर स्वभाव वाला, दो हजार वर्ष तक रहने वाला भस्म राशि नामक महाग्रह भगवान महावीर के जन्म नक्षत्र पर आया तब से