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कल्प सूत्र
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यमवरुण कुबेरादीन्" इत्यादि श्रुति वाक्यों से देवताओं व स्वर्गलोक के अस्तित्व के सम्बन्ध में शङ्का थी और इधर "स एष यज्ञायुधी यजमानोऽञ्जसा स्वर्गलोकं गच्छति' व 'अपाम सोमममृता अभूम अगमन् । ज्योतिः अविदाम देवान्, कि नूनमस्मांस्तृणवदरातिः, किमु धृतिरमृतमयस्य' इन वेद वाक्यों से स्वर्ग और देवताओं का अस्तित्व सिद्ध होता था । भगवान् महावीर ने देवों का अस्तित्व सिद्ध कर मौर्यपुत्र के संशय का समाधान किया । समाधान होते ही तीन सौ पचास छात्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की।
अकम्पित
उसके पश्चात् अकम्पित आये । उन्हें " न ह वै प्रेत्य नरके नारका सन्ति" इस श्रुति वाक्य से नरक और नारकजीवों के अस्तित्व के सम्बन्ध मे शका हुई । पर "नारको वं एष जायते यः शूद्रान्नमश्नाति इस वाक्य से नारको का अस्तित्व भी सिद्ध होता था । इन द्विविध वेद वचनों से वह शंकाग्रस्त थे । भगवान् महावीर ने वेद वाक्यों का समन्वय कर उनकी शंका का समाधान किया। तीन सौ छात्रों के साथ उन्होने प्रव्रज्या ग्रहण की।
अचलभ्राता
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उसके पश्चात् अचल भ्राता आये, उन्हे " पुरुष एवेदं ग्नि सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतत्वस्येशानो' आदि श्रुतिवाक्यों से केवल पुरुष का अस्तित्व ही सिद्ध होता है, पुण्य पाप का अस्तित्व नहीं । किन्तु दूसरी तरफ 'पुण्यः पुण्येन, पापः पापेन कर्मणा' आदि वचन पुण्य पाप के अस्तित्व को भी सिद्ध करते है । इस सम्बन्ध में शंका थी । भगवान् ने पुण्य पाप का अस्तित्व मिद्धकर शंका का समाधान किया। तीन सौ छात्रों के साथ उन्होंने भी प्रव्रज्या ग्रहण की।
तार्य
उसके पश्चात् शास्त्रार्थ के लिए मैतार्य आए। उन्हें 'विज्ञानघन एवं तेभ्यो भूतेभ्य' आदि वेदवाणी से पुनर्जन्म के सम्बन्ध में शका थी । पर साथ ही 'नित्यं ज्योतिर्मर्य : ' आदि से आत्मा की ससिद्धि ओर 'शृगालो वं एष जायते'