________________
कल्प सूत्र
१६६
की झोंपड़ियों की ओर बढ़ा। एक लुहार के घर पर उसे खट्टी छाछ, बासी भात, व दक्षिणा में एक रुपया प्राप्त हुआ । बस, इस घटना ने उसे नियतिवाद की ओर आकर्षित किया। वह सोचने लगा-जो होना होता है, वह होकर रहता है. और वह सब कुछ पहले से ही निश्चित रहता है ।
भगवान् महावीर नालंदा से विहार कर कोल्लागसन्निवेश पधारे और वहाँ एक ब्राह्मण के घर पर चतुर्मासक्षपण का पारणा किया। इधर गोशालक भिक्षा से लौटा । भगवान् को वहाँ नहीं पाकर ढूँढता हुआ कोल्लाग - सनिवेश में आ पहुंचा। भगवान् से शिष्य बना लेने को पुनः पुनः अभ्यर्थना की, किन्तु भगवान् ने स्वीकार नही की । २४९
गोशालक प्रकृति से चचल, उद्धत व लोलुप था । वह भगवान् साथ ही कोल्लाग सन्निवेश से सुवर्णखल जा रहा था । मार्ग में एक ग्वाल मण्डली खीर पका रही थी । खीर को देखकर गोशालक का मन उसे खाने के लिए मचल उठा । महावीर से निवेदन किया। महावीर ने कहा - "खीर पकने के पूर्व ही हण्डी फूटने के कारण धूल मे मिल जायेगी ।" गोशालक ने वालों को सचेत किया और स्वयं खीर खाने को अभिलाषा से वहीं रुक गया । भगवान् आगे बढ़ गये । ग्वालों के द्वारा हण्डी की सुरक्षा करने पर भी हण्डी फूट गई और खीर धूल मे मिल गई । २५० गोशालक नन्हा सा मुँह लिए महावीर के पास पहुंचा। इस घटना से उसकी यह धारणा दृढ़ हो गई कि होनहार कभी टल नही सकती । वह 'नियतिवाद' का पक्का समर्थक बन गया ।
वहाँ से विहार कर भगवान् 'ब्राह्मण गॉव' पधारे। उसके दो विभाग थे । एक 'नन्दपाटक' और द्वितीय 'उपनन्दपाटक' । भगवान् नन्दपाटक में नन्द के घर पर भिक्षा के लिए पधारे। भगवान् को वासी भोजन प्राप्त हुआ, परंतु शान्त भाव से उन्होंने उसको स्वीकार किया । गोशालक उपनन्दपाटक में उपनन्द के यहाँ भिक्षा के लिए गया, दासी बासी तन्दुलों की भिक्षा देने लगी तो गोशालक ने मुँह मंचका कर उसे लेने से इन्कार कर दिया । गौशालक के अभद्र व्यवहार से उपनन्द क्रुद्ध हो गया और दासी से कहा- वह भिक्षा न ले