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कल्पसूत्र
बताई विधि के अनुसार तेजोलब्धि की साधना करने लगा । यथासमय सिद्धि प्राप्त हुई । उसका प्रथम परीक्षण करने के लिए कुऍ पर गया। वहां पर जल भरती हुई एक महिला के घड़े पर ककड़ मारा । घडा टुकड़े होकर गिर पड़ा, पानी वह गया । महिला ने क्रुद्ध होकर गाली दी, तो गोशालक ने तेजोलेश्या से उसे वहीं भस्म करके ढेर बना दिया ।
फिर अष्टांगनिमित्त के ज्ञाता शोण, कलिन्द, कार्णीकार अछिद्र, अग्निवेशायन और अर्जुन प्रभृति से गोशालक ने निमित्त शास्त्र का अध्ययन किया । जिससे वह सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन और मरण आदि बताने लगा और लोगों में वचनसिद्ध नैमित्तिक हो गया । इन सिद्धियों के चमत्कार से प्रसिद्धि हुई और वह अपने आपको आजीवक सम्प्रदाय का तीर्थकर बताकर प्रख्यात हुआ । २८४
भगवान् सिद्धार्थंपुर से वैशाली पधारे। नगर के बाहर ध्यानस्थ मुद्रा में भगवान् को देखकर अबोध बालकों ने उन्हें पिशाच समझा । वे अनेक यातनाएँ देने लगे । अकस्मात् उस पथ से राजा सिद्धार्थ के स्नेही मखा शंख नृपति निकल आये । उन्होंने बालकों को हटाया और स्वयं भगवान् का अभिवादन कर आगे चल दिये । २०५
वहां से भगवान् ने वाणिज्य ग्राम की ओर विहार किया। बीच मे गंडकी नदी आती थी, उसे पार करने के लिए नौका मे बैठकर परले किनारे पहुँचे, नाविक ने भाडा मांगा। पर भगवान् मौन थे । उसने क्रुद्ध होकर भग वान् को किराया न देने के कारण तप्त तवे-सी रेती पर खड़ा कर दिया । संयोगवश उस समय शंख राजा का भगिनीपुत्र 'चित्र' वहां आ पहुँचा और उसने नाविक से भगवान् को मुक्त करवा दिया । २८६
वहाँ से भगवान वाणिज्यग्राम पधारे । वहाँ पर आनन्द नाम के श्रमवह महावीर के चरणों में पहुँचा शीघ्र ही केवलज्ञान उत्पन्न उपासकदशांग सूत्र मे वर्णित
गोपासक को अवधिज्ञान की उपलब्धि हुई थी। और नम्र निवेदन किया- 'प्रभो ! आपको होगा। यहाँ पर स्मरण रखना चाहिए कि 'गाथापति आनन्द से यह आनन्द भिन्न है ।
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