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. :गोशालक ने क्रुद्ध होकर कहा-"मेरे धर्माचार्य की तुम लोग निन्दा कर रहे हो। मेरे धर्माचार्य के दिव्य तपस्तेज से तुम्हारा उपाश्रय जलकर भस्म हो जायें।"
पावपित्य श्रमणों ने कहा-"हम तुम्हारे जैसो के शाप से भस्म होने वाले नहीं हैं।"
लम्बे समय तक वाद-विवाद करने के पश्चात् गोशालक लौटकर महावीर के पास आया और बोला-"आज मेरी सारम्भ और सपरिग्रह श्रमणों से भेंट हुई । मेरे शाप देने पर भी उनका तनिक भी बालवाका नही हुआ ।"
भगवान् ने बताया कि वे पापित्य अनगार है ।२५४ . वहाँ से विहार कर भगवान् चोराक सनिवेश पधारे । २५१ वहां तस्करो का अत्यधिक भय था । अत: आरक्षक (पहरेदार) सतत सावधान रहते थे। भारक्षकों ने परिचय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रश्न किया, पर भगवान् मौन रहे । आरक्षको ते गुप्तचर समझकर भगवान को अनेक यातनाएं दी। सोमा और जयन्ती नामक परिवाजिकाओं को जो उत्पल नैमित्तिक को बहनें थी, जब वह ज्ञात हुआ तब वे शीघ्र ही वहाँ पहुँची और आरक्षको को बताया कि ये 'सिद्धार्थनन्दन महावीर हैं। आरक्षकों ने उन्हे मुक्त कर दिया।
वहाँ से पृष्ठ चम्पा पधारे और चतुर्थ वर्षावास वहां पर व्यतीत किया। प्रस्तुत वर्षावास में चार मास के लिए आहार का परिहार कर आत्म-चिन्तन, व ध्यान मुद्रा में खड़े रहे।
वर्षावास के पश्चात् भगवान् कयंगला नगरी पधारे, वहां दरिद्दथेर के देवल मे ध्यानस्थ हुए । २७ वहां से विहार कर श्रावरती के बाहर ध्यान किया। कड़कड़ाती सर्दी पड़ रही थी, तथापि भगवान् सर्दी की बिना परवाह किये रात भर ध्यान में रहे । २५८ सर्दी से गोशालक बहुत परेशान हुआ । इधर देवल में धार्मिक उत्सव होने से स्त्री-पुरुष आदि एकत्र होकर नृत्य-गाना बजाना कर रहे थे। गोशालक उनकी मजाक करने लगा- “यह कैसा धर्म है, जिसमें स्त्री-पुरुष साथ-साथ निर्लज्ज होकर नाचे जायें।" लोगों ने गोशालक को पकड़