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सिद्धार्थ से स्वप्न-चर्चा
और विभूषित हुआ। ऐसे सिद्धार्थ राजा के सिर पर छत्र धारकों ने कोरंट के पुष्पों की मालाएँ जिसमें लटक रही थीं, ऐसा छत्र धारण किया। श्वेत व उत्तम चामरों से बींजन किया गया। उन्हें निहारते ही जनता के मुख से 'जय हो, जय हो, इस प्रकार का मंगलनाद झंकृत होने लगा।
इस प्रकार अलंकृत होकर अनेक गणनायकों, (गण के स्वामियों) दण्डनायकों (तन्त्र का पालन करने वालों और अपने राष्ट्र की चिन्ता करने वालों) राइसरों (युवराज) तलवरों (प्रसन्न होकर राजा ने जिन्हें पट्टबंध से विभूषित किया हो) माडम्बिको (जिसके चारों ओर आधे योजन तक ग्राम न हो उसे मडम्ब कहते है। और मडम्ब के स्वामी माडम्बिक कहलाते है) कौटुम्बिकों (कतिपय कुटुम्बों के स्वामी) मंत्रियों (राज्य के अधिष्ठायक सचिव) महामत्रियों (मंत्रिमण्डल के प्रधान) गणकों (ज्योतिषी) दौवारिकों (द्वारपाल) अमात्यो (प्रधान) तथा चेट (दास) पीठमर्दक (निकट में रहकर सेवा करने वाले) नागर (नगर निवासी) निगम (व्यापार करने वाले) श्रेष्ठी (नगर के मुख्य व्यवसायी) सेनापति (चतुरग सेनाधिपित) सार्थवाह (सार्थ का मुखिया) दूत (दूसरो को राज्यादेश का निवेदन करने वाले) मन्धिपाल (सन्धि की रक्षा करने वाले) आदि से घिरा हुआ सिद्धार्थ जैसे श्वेत महामेघ से चन्द्र निकलता है, वैसे ही निकला । जैसे ग्रह, नक्षत्र, और तारागणों के मध्य चन्द्र शोभता है, वैसे ही वह शोभायमान हो रहा था । चन्द्र की तरह वह प्रियदर्शी नरपति मज्जन गृह से बाहर निकला।
मल:
मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवहाणसाला तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता अप्पणो उत्तरपुरथिमे दिसीमाए अहमदासणाई सेयवत्थपच्चत्थुयाई सिद्धत्थयकयमंगलोवयाराई रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणिरयणमंडियं