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जो स्वप्न में सूर्य, चन्द्र को निगलता है, वह दरिद्र होने पर भी राजा बनता है। जो स्वप्न में शस्त्र, मणि-मुक्ता, स्वर्ण, रजत आदि का अपहरण होते देखता है, उसके धन की हानि होती है, अपमान होता है, और वह मृत्यु को प्राप्त करता है। जो मानव स्वप्न में गजारूढ होता है, सरिता के सुन्दर तट पर चावल का भोजन करता है, वह धर्मनिष्ठ और धनवान होता है । जो स्वप्न में दाहिनी भूजा को श्वेत सर्प से दंसित देखता हैं, उसको पाँच ही रात्रि में एक हजार स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होती हैं। जो स्वप्न में किसी मानव के मस्तिष्क का भक्षण करता हुआ देखता है उसे राज्य प्राप्त होता है। जो पैर का भक्षण करता है उसे सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त होती हैं । जो भुजा का भक्षण करता है उसे पाँच सौ मुद्राएँ प्राप्त होती हैं ।
जो स्वप्न में सरोवर, समुद्र, जल-परिपूरित सरिता, और मित्र मरण देखता है, वह अकस्मात् ही अत्यधिक धन प्राप्त करता है।
जो स्वप्न में हँसता है वह शोकाकुल होकर रोता है, जो स्वप्न में नृत्य करता है, वह वध और बन्धन को प्राप्त करता है ।
स्वप्न में गाय, वृषभ, तुरङ्ग, राजा और हस्ती के अतिरिक्त कोई काली वस्तु देखना अशुभ है। कपास और नमक के अतिरिक्त अन्य श्वेत वस्तु देखना शुभ है।
जो मानव स्वप्न में स्वयं से सम्बन्धित कोई वस्तु देखता है उसका शुभाशुभ उसे ही मिलता है, यदि दूसरे के लिए देखता है तो उसे मिलता है।
जो स्वप्न में घृत, मधु, और पय-कुम्भ को सिर पर लेता है वह उसी भव में मोक्ष प्राप्त करता है । जो स्वप्न में स्वर्ण राशि, रत्न-राशि, रजत-राशि, तथा सीशे की राशि पर बैठता है वह सम्यक्त्व को प्राप्त कर मोक्ष जाता है। मल:
एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं सुमिणसत्थे बायालीस सुविणा तीसं महासुमिणा बाहत्तर सव्वसुमिणा दिठा, तत्थ णं