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साहरिए तं रयणि च णं नायकुलं हिरण्णणं वढित्था सुवण्णेणं वढित्था धणेणं धन्नेणं रज्जेणं रट्टेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं जणवएणं जसवाएणं वढित्था, विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइएणं संतसारसावएज्जेणं पीइसक्कारसमुदएणं अईव अईव अभिवढित्था ।।८५॥
अर्थ-जिस रात्रि में श्रमण भगवान् महावीर ज्ञातृकुल में लाये गये उस रात्रि से ही सम्पूर्ण ज्ञातृकुल चाँदी से, स्वर्ण से, धन-धान्य से, राज्य से, राष्ट्र (जनपद) से, सेना से, वाहन से, कोश से, कोष्ठागार (धान्यगृह) से, नगर से, अन्तःपुर से, जनपद से, यश और कीर्ति से वृद्धि प्राप्त करने लगा।
___ उसी प्रकार विपुल धन (गोकुल), स्वर्ण, रत्न, मणि, मुक्ता, दक्षिणावर्त शंख, राजपट्ट, प्रवाल, पद्मराग, माणिक, आदि सारभूत सम्पत्ति से भी ज्ञातृकुल की वृद्धि होने लगी । ज्ञातृकुल के लोगों में परस्पर प्रीति, आदर और सत्कार-सद्भाव बढ़ने लगा।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में जो धन शब्द व्यवहृत हुआ है, उम धन के चार प्रकार है (१) गणिम-जो वस्तु गिनकर दी जाए, जैसे फल-फूल आदि । (२) धरिम-जो वस्तु तोलकर दी जाए-जैसे शक्कर गुड़ आदि। (३) मेयजो वस्तु माप करदी जाए जैसे कपडा आदि । (४) परिच्छेद्य-जो वस्तु परख कर दी जाए जैसे हीरा पन्ना आदि जवाहरात।
धान्य शब्द के अन्तर्गत चौबीस प्रकार के धान्यों को लिया गया है, वे धान्य यों है:
(१) गेहूं, (२) जो, (३) जुवार, (४) बाजरी, (५) डांगेर (शाल) (६) वरी, (७) बंटी (वरटी), (८) बाबटी, (६) कांगनी, (१०) चिण्योझिण्यो, (११) कोदरा, (१२) मक्का । इन बारह की दाल न बनने के कारण ये 'लहा' धान्य कहलाते है।