________________
१२२
लगा है, अतएव जब हमारा यह पुत्र जन्म लेगा तब हम इस पुत्र का इसके अनुरूप गुणों का अनुसरण करने वाला, गुण निष्पन्न 'वर्तमान' नाम रखेंगे ।
---• गर्भ की स्थिरता पर शोक मूल :
तए णं समणे भगवं महावीरे माउअणुकंपट्ठाए निच्चले निप्पंदे निरयणे अल्लीणपल्लीणगुत्ते या वि होत्था ॥७॥ ___अर्थ-उसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर माता के प्रति अनुकम्पा करने के लिए अर्थात् 'गर्भ में हलन-चलन करूंगा तो माता को कष्ट होगा' यह सोचकर निश्चल हो गये, उन्होंने हिलना-डुलना बन्द कर दिया, अकम्प बन गये, अपने अङ्गोपाङ्ग को सिकोड़ लिए, इस प्रकार माता की कुक्षि में हलनचलन रहित हो गए। मूल :
तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जिथा-'हडे मे से गब्भे, मड़े मे से गन्भे, चुए मे से गम्भे, गलिए मे से गम्भे एस मे गम्भे पुबि एयति इयाणिं नो एयति त्ति कटु ओहतमणसंकप्पा चिंतासोगसायरं संपविट्ठा करयलपल्हस्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया मियायइ। तं पि य सिद्धत्थरायभवणं उवरयमुइंगतंतीतलतालनाडइज्जजणमणुज्जंदीणविमणं विहरह ॥८॥
___ अर्थ-तब त्रिशला क्षत्रियाणी के मन में इस प्रकार का यह विचार आया कि-मेरा यह गर्भ हरण कर लिया गया है, मेरा गर्भ मर गया है, मेरा यह गर्भ च्युत हो गया है, मेरा गर्भ पहले हिलता-डुलता था, अब हिलताडुलता नहीं है। इस प्रकार विचार कर वह खिन्न मन वाली होकर चिन्ता और शोक के मागर में निमग्न हो गई। हथेली पर मुह रखकर आर्तध्यान