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गर्म परिपालना
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होना असंभव था। उसी समय इन्द्र ने अवधिज्ञान से देखा, रानी के दोहद को पूर्ण करने के लिए वह भूमण्डल पर आया। किले का निर्माण कर सिद्धार्थ को युद्ध के लिए आह्वान किया। स्वयं युद्ध में पराजित हुआ, किले पर सिद्धार्थ ने अधिकार किया, इद्राणी के कानों से कुण्डल छीनकर त्रिशला रानी को पहनाये, दोहद पूर्ण होने से त्रिशला अत्यन्त प्रमुदित हुई। इस प्रकार के दोहदों द्वारा गर्भस्थ शिशु के दया, शौर्य, वीरता आदि गुणो का माता के मन पर स्पष्ट प्रतिबिम्बित होना दृष्टिगोचर होता है ।
मल:
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिह्माणं पढमे मासे दोच्चे परखे चित्तसुद्धे तस्स णं चित्तसुद्धस्स तेरसीदिवसेण नवण्हं मासाणं बहुपडिपुनाणं अद्धट्ठमाण य राई. दियाणं विइक्कंताणं उच्चट्ठाणगतेसु गहेसु पढमे चंदजोगे सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु जतिएसु सब्बसउणेसु पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसपिसि मारुयसि पवातंसि निप्पण्णमेदिणीयंसि कालंसि पमुदितपक्कीलिएसु जणवएसु पुब्बरत्तावरत्तकालसमयसि हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आरोगं दारयं पयाया ॥३॥
___ अर्थ-उस काल उस समय मे (श्रमण भगवान महावीर) जब ग्रीष्म ऋतु चल रही थी, ग्रीष्म का प्रथम मास-चैत्र मास और उसका द्वितीय पक्ष (शुक्ल पक्ष ) चल रहा था, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का तेरहवां दिन था अर्थात् चंत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन, नव मास और सार्द्ध सप्त दिन व्यतीत होने पर जब सभी ग्रह उच्च स्थान में आये हुए थे, चन्द्र का प्रथम योग चल रहा था दिशाएँ सभी सौम्य, अंधकार रहित और विशुद्ध थी, जय-विजय के सूचक सभी प्रकार के शकुन थे, दाक्षिणात्य (दक्षिण दिशिका) शीतल-मन्द सुगंधित पवन प्रवाहित था, पृथ्वी धान्य से सुसमृद्ध थी, देश के सभी जनों के मन में प्रमोद भावनाएं अठखेलियां कर रही थीं, तब मध्यरात्रि के समय हस्तोत्तरा नक्षत्र