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'सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहि जिंघणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सविदियगायपल्हायणिज्जेहिं अभंगिए समाणे तेल्लचम्मसि णिउणेहिं पडिपुनपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं अभंगणपरिमदणुव्वलणकरणगुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेधावीहिं जियपरिस्समेहिं अटिठसुहाए मंससुहाएतयासुहाए रोमसुहाए चउविहाए सुहपरिकम्मणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ ॥६१॥
___ अर्थ-महाराज सिद्धार्थ शयन आसन से उठते हैं, पादपीठिका से नीचे उतरते हैं, पादपीठिका से उतरकर जहां व्यायामशाला थी वहाँ आते हैं, वहां आकर के व्यायामशाला में प्रवेश करते हैं। प्रवेश करके व्यायाम करने के लिए श्रम करते हैं (१) योग्या (शस्त्रों का अभ्यास), (२) वल्गन-कूदना, (३) व्यामर्दन-एक दूसरे की भुजा, आदि अंगो को मरोडना, (४) मल्लयुद्ध-कुश्ती करना, (५) करण-पद्मासन आदि विविध आसन करना। इन व्यायामों को करने से जब वे परिश्रान्त हो गये तब थकान को दूर करने के लिए विविध औषधियों के संमिश्रण से सौ बार पकाये गये अथवा सौ मुद्राओ के व्यय से बने हुए ऐसे शतपाकतल से, एवं जो हजार बार पकाया गया हो, या जिसको पकाने में हजार मोहरें लगी हो ऐसे सहस्रपाक आदि सुगन्धित तेलों से मर्दन किया ।" वे तैल अत्यन्त गुणकारी रसरुधिर आदि धातुओं की वृद्धि करने वाले, क्षुधा को दीप्त करने वाले, बल, मांस और तेजस को बढ़ाने वाले, कामोद्दीपक, पुष्टिकारक और सब इन्द्रियों को सुखदायक थे। अंगमर्दन करने वाले भी सम्पूर्ण उँगलियों सहित सुकुमार हाथ पैर वाले, मर्दन करने में प्रवीण, स्फूति से मर्दन करने वाले, मर्दन कला के विशेषज्ञ, बोलने में चतुर, शरीर के संकेत समझने में कुशल, बुद्धिमान तथा परिश्रम से हार नहीं मानने वाले थे। ऐसे मालिश करने वाले पुरुषों ने अस्थि के सुख के लिए, मांस के सुख के लिए, त्वचा के । सुख के लिए, रोमराजि के सुख के लिए, इस प्रकार चार प्रकार की सुखदायक