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कल्पसूत्र
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देवराईणं अरहंते भगवंते तहप्पगारेहिंतो अंतकुलेहिंतो वा पंत० तुच्छ० दरि६० भिक्खाग० किविणकुलेहिंतो वा तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइन्नकुलेसु वा नाय० खत्तिय• हरिवंस अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिकुलवंसेसु वा साहरावित्तए । तं सेयं खलु ममवि समणं भगवं महावीरं चरिमतित्थयरं पुव्वतित्थयरनिट्ठि माणकु डग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवानंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकु डग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासि - सगोत्ताए कुच्छिसि गन्भत्ताए साहरावित्तए, जे वि य णं से तिस लाए खत्तियाणीए गन्भे तं पि य णं देवाणंदाए माहणीए, जालंधरसगोत्ताप कच्छिसि गन्भत्ताए साहरावित्ताए त्ति कट्टु एवं संपेs, एवं संपेहित्ता हरिणेगमेसिं पायत्ताणियाहिवरं देवं सहावे, हरिणेगमेसि० देवं सद्दावित्ता एवं वयासी ॥ २० ॥
अर्थ - अतीतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल के देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र का यह जीताचार है कि अरिहत भगवान् को तथा प्रकार के अन्तकुल, प्रान्तकुल, तुच्छकुल, दरिद्रकुल, भिक्षुककुल, कृपणकुल, में से लेकर उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, ज्ञातकुल, क्षत्रियकुल, हरिवंशकुल एव तथाप्रकार के अन्य भी विशुद्ध जाति कुल वंशों में संहरित करना । तो मेरे लिये श्रेयस्कर है कि श्रमण भगवान् महावीर चरम तीर्थंकर को, पूर्व तीर्थकरों द्वारा निर्दिष्ट ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर से कोडालगोत्रीय ऋषभदन ब्राह्मण की पत्नी जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से क्षत्रिय कुण्डग्राम नगर के ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में से काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय की भार्या वासिष्ठ गोत्रीय त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भ रूप मे