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निशाला का स्वप्म-दर्शन
और स्निग्ध थे। उसके हाथ और पैर कमल-दल के समान कोमल थे। उसकी अंगुलियां भी सुकोमल व श्रेष्ठ थी। पिंडलियाँ-जंघाएँ कुरुवृन्द (नागरमोथा) के आवर्त के समान अनुक्रम गोल थीं। उसके दोनों घुटने शरीर पुष्ट होने से बाहर दिखलाई नहीं दे रहे थे। उसकी जंघाएँ उत्तम हाथी की सूड की तरह पुरिपुष्ट थी। उसका कटि तट कान्त और सुविस्तृत कनकमय कटि-सूत्र से युक्त था। उसकी रोमराजि श्रेष्ठ अञ्जन, भ्रमर व मेघ समूह के समान श्याम वर्णवाली तथा सरस सीधी, क्रमबद्ध, अत्यन्त पतली, मनोहर, पुष्पादि की तरह मृदु और रमणीय थी । नाभिमण्डल के कारण उसकी जंघाएं सरस, सुन्दर और विशाल थी। उसकी कमर मुट्ठी में आ जाय इतनी पतली और मुन्दर त्रिवली से युक्त थी। उसके अङ्गोपाङ्ग अनेक विध मणियों, रत्नों, स्वर्ण तथा विमललाल सुवर्ण के आभूषणों से सुशोभित थे। उसके स्तनयुगल सुवर्ण कलश की तरह गोल व कठिन थे तथा वक्षस्थल मोतियों के हार से और कुन्द पुष्पमाला से देदीप्यमान था । उसके गले में नेत्रों को प्रिय लगे इस प्रकार के हार थे, जिनमें मोतियों के झुमके लटक रहे थे। सुवर्णमाला भी विराज रही थी और मणिसूत्र भी। उसके दोनों कानों में चमकदार कुण्डल पहने हुए थे और वे स्कन्ध तक लटक रहे थे। मुख से अभिन्न शोभा गुण के कारण वह अतीव सुशोभित थी। उसके विशाल लोचन कमल के समान निर्मल एवं मनोहर थे। उसके दोनों करो में देदीप्यमान कमल थे। जिनमें से मकरन्द की बूंदे टपक रही थी। वह आनन्द के लिए (गर्मी के अभाव में भी) बीजे जाते पँखे से सुशोभित थी । उसका केशपाश पृथक-पृथक् व गुच्छे रहित तथा काला, सघन, सुचिक्कण और कमर तक लम्बायमान था । उसका निवास पद्मद्रह के कमल पर था। उसका अभिषेक हिमवन्त पर्वत के शिखर पर स्थित दिग्गजों की विशाल और पुष्ट शुण्ड से निकलती हुई जलधारा से हो रहा था । ऐसी भगवती लक्ष्मी देवी को त्रिशला माता ने स्वप्न में देखा।
मुल:
तओ पुणो सरसकुसुममंदारदामरमणिज्जभूयं चंपगासोग