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गर्भ संहरण: शक्र की विचारणा
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आए हुए आश्चर्यो का विश्लेषण करना है। जैनागमों में जिस प्रकार आश्चर्यों का वर्णन है वैसा बौद्ध और वैदिक साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं होता । इसका अर्थ यह नहीं कि उन परम्पराओं में आश्चर्य जनक घटनाएं नहीं हैं। घटनाएँ तो अनेक हो सकती है पर उन्होंने उनका इस शैली से निरूपण नहीं किया । स्थानाङ्ग, ११६ ११५ प्रवचन सारोद्धार, एवं कल्पसूत्र की विभिन्न टीकाओं में दस आश्चर्यो का उल्लेख है । ( १ ) उपसर्ग, (२) गर्भापहरण, (३) स्त्रीतीर्थ, (४) अभावितपरिषद् ( अयोग्य परिषद्), (५) कृष्ण का अपरककागमन, (६) चन्द्र सूर्य का आकाश से उतरना, (७) हरिवंश कुल की उत्पत्ति, (८) चमरेन्द्र का उत्पात, (६) उत्कृष्ट अवगाहना के एक सौ आठ सिद्ध, (१०) असंयत पूजा । इनका सक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
( १ ) उपसर्ग - एक समय आर्यावर्त के महामानव भगवान् महावीर धर्मोपदेश करते हुए श्रावस्ती के उद्यान में पधारे । गणधर गौतम भिक्षा के लिए नगरी में गए। उन्होंने सुना - गोशालक अपने आपको जिन व सर्वज्ञ सर्वदर्शी कहता है । गौतम ने महावीर से निवेदन किया। महावीर ने कहा- 'गौतम ! मंखलीपुत्र गोशालक मेरा कुशिष्य है । वह जिन नहीं पर 'जिन' का प्रलाप करने वाला है । महावीर का प्रस्तुत कथन श्रावस्ती में प्रसारित हो गया । गोशालक ने भी सुना। उसने छट्ट के पारणा हेतु गये हुए महावीर के शिष्य आनन्द से कहा"हे आनन्द ! धन प्राप्त करने की लालसा से कुछ वणिक् अशन-पान की व्यवस्था कर भाण्ड आदि लेकर विदेश चले । भयंकर अरण्य में पहुंचने पर साथ का जल समाप्त हो गया । तृषा से छटपटाने लगे, जल की अन्वेषणा करते हुए उन्हें चार बांबी दृष्टिगोचर हुई । प्रथम बांबी खोली । अमृत-सा मधुर जल निकला, जिसे प्राप्त कर सभी आनन्द-विभोर हो गये । दूसरी बाँबी खोली तो चमचमाता हुआ स्वर्ण निकला, तीसरी बांबी खोली तो अमूल्य मणि-मुक्ताएँ उपलब्ध हुईं । ज्यों ही वे चौथी बांबी खोलने के लिए उधर कदम बढ़ाने लगे त्यों ही एक सुबुद्धि वणिक् ने रोका । पर उन्होंने नहीं माना । खोलते ही उसमें से दृष्टि विष सर्प निकला, जिसकी विषैली फूत्कार से वे सब वहीं पर भस्म हो गये । प्रस्तुत रूपक तुम्हारे धर्माचार्य महावीर