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(२५) छातो, (२६) मुख ये तीन विशाल हों, (२७) ग्रीवा, (२८) जडा, (२९) पुरुष चिह्न ये तीन लघु हो, (३०) सत्व, (३१) स्वर, (३२) और नाभि ये तोन गंभीर हों।
इन बत्तीस लक्षणो से युक्त व्यक्ति आकृति से भव्य और प्रकृति से सौम्य और भाग्यशाली होता है।
व्यञ्जन का अर्थ-मस तिल आदि है। पुरुष के दाहिने भाग में यदि ये चिह्न होते है तो उत्तम फल प्रदाता माने गये हैं और बॉयें भाग मे होने पर मध्यम फलदाता। महिलाओं के बायीं ओर श्रेष्ठ माने गये हैं।
हस्तरेखा के द्वारा भी मानव के भाग्य और व्यक्तित्व का पता लगता है । सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि जिसके हाथ में अत्यधिक रेखाएँ होती हैं, या बहुत ही कम रेखाएँ होती है वह दुःखी होता है । जिस व्यक्ति के अनामिका अंगुली के प्रथम पर्व से कनिष्ठिका अगुली बडी होती है, वह धनवान होता है। मणिबन्ध से जो रेखा चलती है वह पिता की रेखा है । करभ से कनिष्ठिका अगुली के मूल की ओर से जो रेखाएं चलती है वे वैभव और आयु की प्रतोक हैं। ये तीनों ही रेखाएँ तर्जनी और अंगूठे के बीच जा मिलती है । जिसको ये तीनों रेखाएँ पूर्ण और दोष वजित हों वह धन धान्य से समृद्ध होता है। पूर्ण आयु का उपभोग करता है। जिसके दाहिने हाथ के अँगूठे में यव का चिह्न होता है उसका जन्म शुक्ल पक्ष का तथा वह यशस्वी होता है।
जल से सम्पूरित बर्तन मे एक पुरुष प्रवेश करे। उस समय जो पानी बर्तन में से बाहर निकले यदि वह पानी द्रोण (बत्तीस मेर) प्रमाण हो तो वह पुरुष मानयुक्त कहलाता है। तराजू में तोलने पर यदि पुरुष अर्धभार (प्राचीन तोल विशेष) प्रमाण हो तो उन्मान युक्त माना जाता है। आत्माङ्गल से शरीर का नाप-प्रमाण कहलाता है । आत्माङ्गल से नापने पर एक सौ आठ अंगुल ऊँचाई वाला होने पर उत्तम पुरुष, छयानवें और चौरासी अंगुल वाला मध्यम पुरुष कहा जाता है, किन्तु तीर्थंकर का देह सर्वोत्तम होता है। वे सभी उचित लक्षण, व्यंजन, मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त होते हैं।