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(७) सौधर्म देवलोक
वहाँ से आयु पूर्णकर सौधर्मकल्प में मध्यमस्थिति वाला देव बना । (८) अग्निद्योत
कल्प
वहाँ से च्यवकर वह चैत्यसन्निवेश में अग्निद्योत नामक ब्राह्मण हुआ । उसकी आयु चौसठ लाख पूर्व की थी । अन्त में त्रिदण्डी परिव्राजक हुआ । (e) ईशान देवलोक
वहां से आयु पूर्णकर ईशान देवलोक में मध्यमस्थिति वाला देव बना । (१०) अग्निभूति
तत्पश्चात् मन्दिर नामक सन्निवेश में अग्निभूति नामक ब्राह्मण के रूप में जन्म लिया । उसकी आयु छप्पनलाख पूर्व की थी। जीवन की सांध्यवेला में वहां भी वह त्रिदण्डी परिव्राजक बना ।
(११) सनत्कुमार देवलोक
वहाँ से आयु पूर्ण कर सनत्कुमारकल्प में मध्यमस्थिति वाला देव हुआ । (१२) भारद्वाज
सनत्कुमारकल्प से आयुपूर्ण कर श्वेताम्बिका नगरी में भारद्वाज नाम का ब्राह्मण हुआ । उसकी आयु चवालीस लक्ष पूर्व की थी । अन्तिम समय में त्रिदण्डी परिव्राजक बना ।
(१३) माहेन्द्र देवलोक
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वहां से आयु पूर्णकर वह माहेन्द्रकल्प में मध्यम स्थिति वाला देव बना ।'
(१४) स्थावर ब्राह्मण
देवलोक से व्यवकर और कितने ही काल तक संसार में परिभ्रमण कर, वह राजगृह नगर में स्थावर नामक ब्राह्मण हुआ। वहां पर उसकी आयु चौतीस लक्ष पूर्व की हुई । जीवन के प्रान्त भाग में त्रिदण्डी परिव्राजक बना । (१५) ब्रह्म देवलोक
पन्द्रहवें भाव में वह ब्रह्म देवलोक में मध्यमस्थिति वाला देव हुआ ।