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भगवान के पूर्व भव
(१८) त्रिपृष्ठ
देवलोक की आयु पूर्ण होने पर वह पोतनपुर नगर में प्रजापति राजा की महारानी मृगावती की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । १२ माता ने सात स्वप्न देखे । जन्म होने पर पुत्र के पृष्ठ भाग में तीन पसलिएँ होने के कारण उसका "त्रिपृष्ठ " नाम रखा । यौवनावस्था प्राप्त की ।
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राजा प्रजापति प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव के माण्डलिक थे । एक बार प्रतिवासुदेव ने निमित्तज्ञ से यह जिज्ञासा प्रस्तुत की कि मेरी मृत्यु कैसे होगी ? निमित्तज्ञ ने बताया कि " जो आपके चण्डमेघ दूत को पीटेगा, तुङ्गगिरि पर रहे हुए केसरी सिंह को मारेगा उसके हाथ से आपकी मृत्यु होगी ।" यह सुनकर अश्वग्रीव भयभीत हुआ । उसने सुना - प्रजापति राजा के पुत्र बड़े ही बलवान् है | परीक्षा करने चण्डमेघ दूत को वहाँ प्रेषित किया ।
राजा प्रजापति अपने पुत्र तथा सभासदों के साथ राजसभा में बैठा था । संगीत की भंकार से राजसभा झंकृत हो रही थी । सभी तन्मय होकर नृत्य और संगीत का आनन्द लूट रहे थे । ठीक उसी समय अभिमानी दूत ने विना पूर्व सूचना दिये ही राजसभा में प्रवेश किया। राजा ने संभ्रान्त हो दूत का स्वागत किया । संगीत और नृत्य का कार्य स्थगित कर उसका सन्देश सुना ।
त्रिपृष्ठ को रंग में भंग करने वाले दूत की उद्दण्डता अखरी । उन्होंने अपने अनुचरों को यह आदेश दिया कि जब यह दूत यहाँ से रवाना हो तब हमें सूचित करना ।
राजा ने सत्कारपूर्वक दूत को विदा किया। इधर दोनों राजकुमारों को सूचना मिली । वे जंगल में दूत को पकड़ कर बुरी तरह पीटने लगे । दूत जो भी साथी - सहायक थे वे सभी भाग छूटे, दूत की खूब पिटाई हुई ।
जब प्रजापति को यह वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो वे चिन्तातुर हो गए । दूत को पुनः अपने पास बुलाकर अत्यधिक पारितोषिक प्रदान किया और कहा कि"पुत्रों की यह भूल अश्वग्रीव से न कहना ।" दूत ने स्वीकार कर लिया, पर, उसके साथी जो पहले पहुँच चुके थे, उन्होंने सारा वृतान्त अश्वग्रीव को बता