________________
उपक्रम : वस कल्प
११
आर्य कालक ने चतुर्थी तिथि में पर्युषणा की आराधना की थी, मगर उसे सामान्य नियम नहीं समझना चाहिए और वह किसी परम्परा के रूप में मान्य नहीं की जा सकती । ७२ वर्षावास मे भी विशेष कारण से श्रमण विहार कर सकता है। स्थानाङ्ग में पांच कारणों का निर्देश किया है । वे कारण ये हैं - (१) ज्ञान के लिए (२) दर्शन के लिए (३) वारित्र के लिए, (४) आचार्य और उपाध्याय के काल करने पर (५) आचार्य, उपाध्याय आदि की वैयावृत्य के लिए । ७३
कल्पसूत्र की टीकाओ मे कुछ अन्य कारण भी वर्षावास में विहार करने के बताये हैं। जैसे कि ' दुकाल के कारण भिक्षा की उपलब्धि न होने से, राज- प्रकोप होने से, रोग उत्पन्न होने से । जीव उत्पत्ति का आधिक्य होने से, आदि आदि ।७४
वर्षावास समाप्त होने पर श्रमण को विहार करना चाहिए। पर, यदि वर्षा का आधिक्य हो, वर्षा से मार्ग दुर्गम व भग्न हो गये हों, कीचड़ अधिक हो, बीमारी आदि कोई कारण हो तो वह अधिक भी ठहर सकता है । ७५
वर्षावास के लिए भी वही क्षेत्र उत्तम माना गया है, जहाँ पर तेरहगुण हों। वे गुण इस प्रकार है : - - ( १ ) जहाँ पर विशेष कीचड न हो, (२) अधिक जीवो की उत्पत्ति न हो, (३) शौच-स्थल निर्दोष हो, (४) रहने का स्थान शान्तिप्रद हो, (५) गोरस की उपलब्धि यथोचित होती हो, (६) जनसमूह विशाल और भद्र हो, (७) (८) औषध सुलभ हो, (६) गृहस्थ वर्ग धन धान्यादि से समृद्ध हो, (१०) हो, (११) श्रमण ब्राह्मण का अपमान न होता हो, (१२) भिक्षा सुलभ हो, पर स्वाध्याय के योग्य स्थान हो । ७६
भगवान् ऋषभदेव और महावीर के श्रमणो के लिए वर्षावास - पर्युषणा का पूर्ण विधान है, अर्थात् वे वारमास तक के नियत काल में एक ही क्षेत्र में वास करते हैं । शेष बावीस तीर्थङ्कर के श्रमणों के लिए ऐसा नही है । वे वर्षा प्रादि के कारण ठहरते भी थे और कारणाभाव में विहार भी कर जाते थे ७ ७
सुज्ञ वैध हो, राजा धार्मिक (१३) जहाँ
इन दसकल्पो में (१) आवेलक्य, (२) औद्द शिक, (३) प्रतिक्रमण, (४) राजपिण्ड, (५) मासकल्प, (६) पर्युषणा कल्प, ये छह कल्प अस्थिर हैं । ७८ (१) शय्यातर पिण्ड, (२) चतुर्थ महाव्रत रूप धर्म, (३) पुरुषज्येष्ठ (४) कृतिकर्म ये चाकल्प अवस्थित हैं और चौबीस ही तीर्थङ्करो के शासन में मान्य होते हैं । ७९
----• कल्प : तीसरी औषध
दिया है ।
कल्प के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए पूर्वाचार्यों ने एक विचार प्रधान दृष्टांत
क्षितिप्रतिष्ठ नगर था । जितशत्रु नामका राजा वहाँ राज्य करता था । चिरप्रतीक्षा के बाद, ढलती हुई आयु में उसे पुत्र रत्न की उपलब्धि हुई । पुत्र सदा स्वस्थ और