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उपलबस कल्प
-मासकल्प
श्रमण का आचार है कि वह एक स्थान पर स्थिर होकर नहीं रहता। चातुर्मास के सिवाय वह शीत (हेमन्त) और ग्रीष्म ऋतु मे विहार करता रहता है । १ भारण्डपक्षी की तरह अप्रमत्त होकर ग्रामानुग्राम विहार करता है । ६२
विहार की दृष्टि से काल को दो भागों में विभक्त किया गया है-वर्षाकाल और ऋतुबद्ध काल । वर्षाकाल में श्रमण चार मास तक एक स्थान पर स्थिर रह सकता है और ऋतुबद्ध काल में एक मास तक । वर्षाकाल का समय एक स्थान पर स्थिर रहने का उत्कृष्ट समय है। अतः उसे सवत्सर कहा है । ६३ बृहत्कल्प भाष्य में वर्षांवास का परमप्रमाण चारमास बताया है। और शेष काल का परम प्रमाण एक मास । १५ जिस स्थान पर श्रमण उत्कृष्ट काल रह चुका हो, अर्थात् जिस स्थान में वर्षा ऋतु में वर्षावास किया हो उस स्थान में दो चातुर्मास्य अन्यत्र किए बिना चातुर्मास्य न करे, और जिस स्थान पर मासकल्प किया हो उस स्थान पर दो मास अन्यत्र बिताए विना न रहे।६६ यद्यपि गाथा में तृतीय बार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किंतु स्थविर अगस्त्यसिंह के अभिमतानुसार चकार के द्वारा वह प्रतिपादित है ।१७
भगवान् ऋषभदेव और महावीर के श्रमणों के लिए ही मासकल्प का विधान है, शेष बावीस तीर्थङ्करो के श्रमणों के लिए नहीं । ६८ वे चाहें तो दीर्घकाल तक भी एक स्थान पर रह सकते हैं और चाहें तो शीघ्र ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रस्थान कर जाते हैं। ---. पर्युषणाकल्प
'परि" उपसर्ग पूर्वक वस् धातु से "अन." प्रत्यय लगाकर पर्युषण शब्द बना है। जिसका अर्थ है आत्मा के समीप रहना, पर-भाव से हटकर स्व-भाव मे रमण करना। आत्म-मज्जन, आत्म-रमण या आत्मस्थ होना। आत्म-रमण का यह कार्य एक दिन सामूहिक रूप से मनाया जाता है और वह 'पर्व' कहलाता है। यह पवित्र पर्व आषाढ़ी पूर्णिमा से उनपचास अथवा पचासवें दिन मनाया जाता है। जिसे सवत्सरी महापर्व कहते है।
पर्यषणा-कल्प का दूसरा अर्थ है एक स्थान पर निवास करना। वह सालंबन और निरालबन रूप दो प्रकार का है। सालबन का अर्थ है सकारण और निरालबन का अर्थ है कारण रहित । निरालंबन के भी जघन्य और उत्कृष्ट-रून दो भेद है।
पर्युषणा के पर्यायवाची शब्द इस प्रकार बतलाए गए हैं-(१) परियाय बत्पवणा (२) पज्जोसमणा (३) पागइया (४) परिवसना (५) पज्जुसणा () वासावास (७) पढमसमोसरण (८) ठवणा और (8) जेट्टोग्गह।
यद्यपि ये सब नाम एकार्थक है तथापि व्युत्पत्ति भेद के आधार पर उनमें किंचित् अर्थभेद भी हैं और यह अर्थ भेद पर्युषणा से सम्बन्धित विविध परम्पराओं, एवं उस नियत