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कल्प सूत्र
के साथ ही छेदोपस्थापनिक चारित्र भी होता है। उसके आधार से ही श्रमण ज्येष्ठ या कनिष्ठ होता है। आज के युग में सामायिक चारित्र के ग्रहण को लघु-दीक्षा और छेदोपस्थापनिक चारित्र के ग्रहण को बड़ी-दीक्षा कहते हैं।"
ज्येष्ठ कल्प का तीसरा अर्थ है कि पिता-पुत्र, राजा-मन्त्री, सेठ-मुनीम, मातापुत्री आदि यदि एक ही साथ प्रवज्या ग्रहण करे तो पिता, राजा, सेठ, माता आदि ज्येष्ठ माने जाएं। यदि पुत्र आदि ने प्रथम सामायिक चारित्र आदि ग्रहण कर लिया है और फिर पिता आदि के अन्तर्मानस में प्रव्रज्या लेने की भावना उबुद्ध होती है तो चार-छह माह तक उसे छेदोपस्थापनिक चारित्र न दे। प्रथम पिता आदि को चारित्र देकर ज्येष्ठ बनावे । -.प्रतिक्रमण
प्रतिक्रमण जैन धर्म की साधना का प्रमुखतम अग है। प्रतिक्रमण का अर्थ है "प्रमादवश स्व-स्थान से च्युत होकर पर-स्थान को प्राप्त करने के पश्चात् पुनः स्व-स्थान को प्राप्त करना ।५६ अतिक्रमण का अर्थ समझने से प्रतिक्रमण का अर्थ-बोध स्पष्ट हो जायेगा। अतिक्रमण का अर्थ है सीमा को लाधना और तब प्रतिक्रमण का अर्थ हुआ पुनः अपनी सीमा में लौट आना। आत्मा निज स्वरूप से पर स्वरूप मे चला जाने पर उसे पुनः अपने स्वरूप में ले आने की क्रिया प्रतिक्रमण है।
मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, और अप्रशस्त योग ये चार दोष साधना के क्षेत्र मे बहुत ही भयकर माने गए हैं, अतः साधक को इन दोषों के परिहार हेतु प्रतिक्रमण करना चाहिए। मिथ्यात्व को त्याग कर, सम्यक्त्व को स्वीकार करना चाहिए। अविरति को छोड़ कर, व्रत अगीकार करना चाहिए। कषाय से मुक्त होकर, क्षमा, विनम्रता, सरलता, निर्लोभता धारण करना चाहिए। अप्रशस्त योगो को छोड़ कर प्रशस्त योगो मे रमण करना चाहिए।"
बावीस तीर्थकरों के समय के साधक अतीव विवेकनिष्ठ एव जागरूक थे, अतः वे दोष लगने पर ही प्रतिक्रमण करते थे।"८
कुछ आचार्यों का अभिमत है कि देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक, इन पाच प्रतिक्रमणो मे से बावीस तीर्थंकरों के समय देवसिक और रात्रिक ये दो ही प्रतिक्रमण होते थे शेष नही ।५१ जिनदासगणी महत्तर ने स्पष्ट कहा है कि "प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय नियमित रूप से उभय काल प्रतिक्रमण करने का विधान है और साथ ही दोष काल में भी ईर्यापथ एवं भिक्षा आदि के रूप में तत्काल प्रतिक्रमण का विधान है। बावीस तीर्थकरों के शासन काल में दोष लगते ही शृद्धि करली जाती थी, उभय काल नियमेन प्रतिक्रमण का विधान नहीं था।