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आए हैं, उनमें दूसरा नाम "समण" है। "समण" शब्द के 'समन' 'सुमनस्' और 'श्रमण' ये तीन संस्कृत रूप होते हैं ।
___ सभी जीवों को आत्म-तुला की दृष्टि से तोलने वाला समतायोगी "समन" कहलाता है। राग द्वेष रहित मध्यस्थवृत्ति वाला 'समनस्' अथवा 'सुमनस्' कहलाता है। 'समनस्' के स्थान पर 'सुमनस्' का प्रयोग मिलता है, जिसका अर्थ है-'जिसका चित्त सदा कल्याणकारी कार्यों में लगा रहता हो, मन से कभी पाप का चिंतन न करता हो उसे 'समनस्' या 'सुमनस्' कहा जाता है।'
तपस्या से खिन्न क्षीणकाय और तपस्वी 'श्रमण'' कहलाता है । समभाव प्रभृति सद्गुणों से सम्पन्न होने से भगवान् श्रमण कहलाते थे।
भगवान में-"भग" शब्द का प्रयोग ऐश्वर्य, रूप, यश, श्री, धर्म और प्रयत्न इन छह अर्थो में होता है । जिसके यश आदि का महान विस्तार होता है उसे भगवान् कहते हैं।'' यजुर्वेद (१५। ३८) के प्रसिद्ध भाष्यकार आचार्य उव्वट ने भी 'भग' शब्द के ये ही अर्थ मान्य किए है । बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार भगवान् शब्द की व्युत्पत्ति यों है-जिसके राग, द्वेष, मोह एवं आश्रव भग्न-नष्ट हो गये हैं-वह भगवान् है ।'२
महावीर-यश और गुणों में महान् वीर होने से भगवान महावीर कहलाए। जो शूर-विक्रान्त होता है उसे वीर कहते हैं, कषायादि महान् शत्रुओं को जीतने से भगवान् महाविक्रांत-महावीर कहलाये ।१४ आचारांग मे कहा है-'भयंकर भय-भैरव तथा अचेलकता आदि कठिन तथा घोरातिघोर परीषहो को दृढ़तापूर्वक सहन करने के कारण देवों ने उनका नाम महावीर रखा।'५
___ कल्पसूत्र के चूर्णिकार ने५६ और टिप्पणकार आचार्य पृथ्वीचन्द्र ने हस्तोत्तरा का अर्थ किया है “हस्त से उत्तर हस्तोत्तर है", अर्थात् उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र । नक्षत्रों की गणना करने से हस्त नक्षत्र जिसके उत्तर (पहले) आता है वह नक्षत्र, इसी नक्षत्र में भगवान महावीर के पाँच कल्याणक हुए।