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धर्मशास्त्र का इतिहास
२१. च्यवन
मिताक्षरा, अपरार्क तथा अन्य प्रमाण-ग्रन्थों ने व्यवन के कतिपय श्लोक एवं सूत्र उद्धृत किये हैं। गोदान करने तथा उसके लिए मन्त्रोच्चारण की विधियों के सिलसिले में अपरार्क ने च्यवन का प्रमाण दिया है ( याज्ञ०, १.१२७ ) । कुत्ता, श्वपाक, शव, चिताघूम, सुरा, सुरापात्र आदि के स्पर्श से उत्पन्न प्रायश्चित्त पर चर्चा करते हुए मिताक्षरा एवं अपरार्क ने च्यवन का उद्धरण दिया है। इसी प्रकार अन्य सूत्रों का उद्धरण यत्र-तत्र दिया गया है।
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२२. जातूकर्ण्य
याज्ञवल्क्य की व्याख्या करते हुए विश्वरूप ने बुद्ध-याज्ञवल्क्य का एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें जातूकर्ण्य नामक एक 'धर्मवक्ता' की चर्चा हुई है। यह नाम कई प्रकार से लिखा गया है, यथा जातुकणि, जातूकर्ण्य या जातुकर्ण । स्मृतिचन्द्रिका ने अंगिरा को उद्धृत करते हुए जातक को उपस्मृतिकारों में गिना है । विश्वरूप ने जातूकर्ण्य के एक गद्यांश को कई बार उद्धृत किया है। जातूकर्ण्य ने आचार श्राद्ध-सम्बन्धी एक धर्मसूत्र लिखा था, यह स्पष्ट है । जातूकर्ण्य को मिताक्षरा, हरदत्त, अपरार्क तथा अन्य लेखकों ने श्लोकों के रूप में उद्धृत किया है । लगता है, तब तक यह धर्मसूत्र विस्मृत या लुप्त हो चुका था। अपरार्क द्वारा उद्धृत अंश में कन्या राशि का नाम आया है, इससे यह कहा जा सकता कि जातूकर्ण्य तीसरी या चौथी शताब्दी में रचा गया होगा ।
२३. देवल
मिताक्षरा ने देवल के गद्यांश उद्धृत किये हैं, जिनमें शूद्र की वृत्ति का, यायावर एवं शालीन नामक गृहस्थों का वर्णन है । अपरार्क एवं स्मृतिचन्द्रिका में भी देवल के उदाहरण हैं। आचार, व्यवहार, श्राद्ध, प्रायश्चित आदि विषयों पर देवल के उद्धरण प्राप्त होते हैं । देवल की एक स्वतन्त्र कृति अवश्य थी । आनन्दाश्रम के संग्रह में ९० श्लोकों की एक देवलस्मृति है । यह प्राचीन नहीं प्रतीत होती । महाभारत में भी देवल का मत उल्लिखित है ( समापर्व, ७२.५), जिसमें मनुष्यों की तीन ज्योतियों, यथा अपत्य ( सन्तान ), कर्म एवं विद्या का उल्लेख है । सम्पत्ति-विभाजन, वसीयत, स्त्रीधन पर अपरार्क एवं स्मृतिचन्द्रिका में उद्धृत अंश अवलोकनीय हैं। सम्भवतः बृहस्पति एवं कात्यायन के समय में देवल विद्यमान थे ।
२४. पैठीनसि
यद्यपि याज्ञवल्क्य में पैठीनसि नामक धर्मसूत्रकार की गणना नहीं है, तथापि इस में सन्देह नहीं कि ये एक अति प्राचीन धर्मसूत्रकार हैं। गोहत्या के प्रायश्चित्त का उल्लेख करते हुए विश्वरूप ने पैठीनसि को उद्धृत किया है। डा० जाली एवं डा० कैलेण्ड के अनुसार पैठीनसि अथर्ववेदी ठहरते हैं। मिताक्षरा ने (याज्ञवल्क्य पर, १.५३) पैठीनसि के सूत्र का प्रमाण देते हुए लिखा है कि व्यक्ति को मातृकुल से तीन एवं पितृकुल से पाँच पीढ़ियाँ छोड़कर विवाह करना चाहिए। स्मृतिचन्द्रिका, हरदत्त, अपरार्क ने पैठीनसि के बहुत से सूत्र उद्धृत किये हैं।
२५. बुध
याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने इस सूत्रकार का नाम नहीं लिया है। बुध के उद्धरण बहुत ही कम मिलते
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