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अध्याय १५ सती-प्रथा
आजकल भारत में सती होना अपराध है, किन्तु लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व (सन् १८२९ के पूर्व ) इस देश में विधवाओं का सती जाना एक धर्म था। विधवाओं का सती, अर्थात् पति की चिता पर जलकर भस्म हो जाना केवल ब्राह्मण धर्म में ही नहीं पाया गया है, प्रत्युत यह प्रथा मानव समाज की प्राचीनतम धार्मिक धारणाओं एवं अन्धविश्वासपूर्ण कृत्यों में समाविष्ट रही है। सती होने की प्रथा प्राचीन यूनानियों, जर्मनों, स्लावों एवं अन्य जातियों में
पायी गयी है (देखिए डाई फ्रौ, पृ०५६, ८२-८३ एवं रचंडर का ग्रन्थ 'प्रीहिस्टारिक एण्टीक्वीरिज आव दि आर्यन् पीपुल', अंग्रेजी अनुवाद, १८९०, पृ० ३९१ एवं वेस्टरमार्क की पुस्तक 'आरिजिन एण्ड डेवलपमेण्ट ऑव मॉरल आइडियाज', १९०६, जिल्द १, पृ० ४७२-४७६ ) । किन्तु इसका प्रचलन बहुधा राजघरानों एवं भद्र लोगों में ही रहा है। वैदिक साहित्य में सती होने के विषय में न तो कोई निर्देश मिलता है और न कोई मन्त्र ही प्राप्त होते हैं। गृह्यसूत्रों ने भी इसके विषय में कोई विधि नहीं प्रस्तुत की है। लगता है कि ईसा की कुछ शताब्दियों पहले यह प्रथा ब्राह्मणवादी भारत में प्रचलित हुई। यह प्रथा यहीं उत्पन्न हुई, या किसी अभारतीय जाति से ली गयी, इस विषय में प्रमाणयुक्त उक्ति देना कठिन है। विष्णुधर्मसूत्र को छोड़कर किसी अन्य धर्मसूत्र ने भी सती होने के विषय में कोई निर्देश नहीं किया है । मनुस्मृति इसके विषय में सर्वथा मौन है। स्ट्रैबो (१५।१।३० एवं ६२ ) में आया है कि "अलेक्जेण्डर के साथ यूनानियों ने पंजाब के कठाइयों (कठों) में सती प्रथा देखी थी; उन्होंने यह भी व्यक्त किया है कि यह प्रथा इस डर से उमरी कि पत्नियाँ अपने पतियों को छोड़ देंगी या विष दे देंगी" (हैमिल्टन एवं फैल्कोनर का अनुवाद, जिल्द ३ ) | विष्णुधर्मसूत्र ( २५।१४ ) ने लिखा है -- “ अपने पति की मृत्यु पर विधवा ब्रह्मचर्य रखती थी या उसकी चिता पर चढ़ जाती थी ( अर्थात् जल जाती थी ) । ": महाभारत ने, यद्यपि वह रक्तरंजित युद्धों की गाथाओं से भरा पड़ा है, सती होने के बहुत कम उदाहरण दिये हैं; “पाण्डु की प्यारी रानी माद्री ने पति के शव के साथ अपने को जला दिया । " विराटपर्व में कीचक के साथ जल जाने के लिए सैरन्ध्री को आज्ञा दी गयी है (२३८) । प्राचीन काल में मृत राजा के साथ दास या दासों को गाड़ देने की प्रथा थी; मौसलपर्व ( ७।१८ ) में आया है कि वसुदेव की चार पत्नियों देवकी, भद्रा, रोहिणी एवं मंदिरा ने अपने को पति के साथ जला डाला, और (७१७३-७४) कृष्ण की रुक्मिणी, गान्धारी, शैब्या, हैमवती एवं जाम्बवती ने अपने को उनके ( श्री कृष्ण के) शरीर के साथ जला दिया तथा सत्यभामा एवं अन्य रानियों ने तप के लिए वन का मार्ग लिया । विष्णुपुराण (५।३८१२ ) ने लिखा है कि कृष्ण की मृत्यु पर उनकी आठ रानियों ने अग्नि में प्रवेश कर
१. मृते भर्तरि ब्रह्मचयं तदन्वारोहणं वा । विष्णुधर्मसूत्र ( २५/१४ ) : याज्ञवल्क्य के ११८६ की व्याख्या मं मिताक्षरा द्वारा उद्धृत ।
२. आदिपर्व ९५।६५ -- तत्रैनं चिताग्निस्यं माद्री समन्वारुरोह । आदिपर्व १२५-२९ - - राज्ञः शरीरेण सह ममापीदं कलेवरम् । दग्धव्यं सुप्रतिच्छन्नमेतदायें प्रियं कुरु
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