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वैश्वदेव, बलि
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आपस्तम्बधर्मसूत्र ( २/४/९/५ - ६ ) के मत से कुत्तों एवं चाण्डालों को वैश्वदेव का पक्वान्न देना चाहिए। मनु (३३८७९३) के मत से वैश्वदेव के उपरान्त सभी दिशाओं में इन्द्र, यम, वरुण, सोम तथा उनके अनुचरों को, द्वार पर मरुतों को, जलों को, वृक्षों को, घर के शिखर की लक्ष्मी (श्री) को, घर की नींव की मद्रकाली को, घर के मध्य के ब्रह्मा एवं वास्तोष्पति को, विश्वेदेवों को (आकाश में फेंककर ), दिन में चलने वाले प्राणियों को (जब बलिहरण दिन में किया जाता है) और रात्रि में चलने वाले प्राणियों को बलि दी जाती है। घर के प्रथम खण्ड में सबकी भलाई के लिए बलि देनी चाहिए, दक्षिण में बलि का शेषांश पितरों को देना चाहिए। गृहस्थ को चाहिए कि बहुत सावधानी तथा धीरे से ( जिससे धूल भोजन में न मिल सके ) कुत्तों, चाण्डालों, जातिच्युतों, कोढ़ जैसे रोग से पीड़ितों, कौओं, कीड़ों-मकोड़ों को बलि दे । याज्ञवल्क्य ( १११०३) ने गृहस्थों से कहा है कि वे कुत्तों, चाण्डालों एवं कौओं को बलि पृथिवी पर ही दें।' इस विषय में देखिए शांखायनगृह्यसूत्र ( २/१४), वनपर्व ( २/५९) एवं अपरार्क ( पृ० १४५ ) । मनु (३॥१२१ ) ने कहा है कि स्त्रियां बिना मन्त्रोच्चारण के सायंकाल की बलि दे सकती हैं। किन्तु वे देवताओं का ध्यान कर सकती हैं।
पितृयज्ञ
यह शब्द ऋग्वेद (१०।१६।१० ) में आया है, किन्तु इसका अर्थ अनिश्चित है । पितृयज्ञ तीन प्रकार से सम्पादित होता है; (१) तर्पण द्वारा ( मनु, ३।७० एवं २८३), (२) बलिहरण द्वारा, जिसमें बलि का शेषांश पितरों को दिया जाता है (मनु ३।९१ एवं आश्लायनगृह्यसूत्र १०२०११ ) एवं (३) प्रति दिन श्राद्ध द्वारा, जिसमें कम से कम एक ब्राह्मण को खिलाया जाता है (मनु ३।८२-८३) । प्रति दिन के श्राद्ध में पिण्डदान नहीं होता है और न पार्वण श्राद्ध की विधि एवं नियमों का पालन ही होता है। श्राद्ध के विषय में आगे लिखा जायगा । तर्पण एवं बलिहरण के विषय में पहले ही लिखा जा चुका है।
७. सर्वान् बैश्वदेवे भागिनः कुर्वीताश्वचण्डालेभ्यः । नानर्हद्म्यो बच्चादित्येके । आप० ष० (२२४।९।५-६ ) । ८. देवेभ्यश्च हुताशाच्छेषाद् भूतबल हरेत् । अन्नं भूमौ श्वचाण्डालवायसेभ्यश्च निक्षिपेत् ॥ याज्ञवल्क्य
( १११०३) ।
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