Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 1
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 557
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास होत-वर्ग में अध्वर्यु, होता, ब्रह्मा, आग्नीघ्र, प्रस्तोता, प्रतिहर्ता आदि आते हैं। प्रत्येक जप में यजमान त्याग का मन्त्र पढ़ता है। अनुयाज तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें प्रथम में 'देवान् यज' तथा अन्य दो में केवल 'यज कहा जाता है। इसके उपरान्त कई अन्य कृत्य किये जाते हैं, जिनका वर्णन यहां अपेक्षित नहीं है। होता पत्नी की मेखला (योक्त्र) खोल देता है और मन्त्र पढ़ता है (ऋग्वेद १०८५।२४)। पत्नी योक्त्र को अलग कर देती है और अध्वर्यु उससे मन्त्रोच्चारण कराता है (तैत्तिरीय संहिता १।१।१०।२)। अन्य अन्तिम कृत्य स्थानाभाव से यहाँ लिखे नहीं जा रहे हैं। दर्शष्टि की विधि में पूर्णमासेष्टि की अपेक्षा अधिक मत-मतान्तर पाये जाते हैं। दर्श-पूर्णमास के कई परिष्कृत रूप हैं, यथा दाक्षायण यज्ञ, वैमृध, साकम्प्रस्थीय आदि, जिन्हें हम स्थानसंकोच के कारण यहाँ नहीं दे रहे हैं। जैमिनि (२॥३॥५-११) के कथनानुसार दाक्षायण, साकम्प्रस्थीय एवं संक्रम यज्ञ दर्श-पूर्णमास के ही परिष्कृत रूप हैं। पिण्डपितृयज्ञ इस कृत्य में पके हुए चावल के पिण्ड पितरों को दिये जाते हैं, अतः इसे पिण्डपितृयज्ञ की संज्ञा दी गयी है।" जैमिनि (४।४।१९-२१) के अनुसार पिण्डपितृयज्ञ एक स्वतन्त्र कृत्य है न कि दर्श यज्ञ के अन्तर्गत अथवा उसका अंग। किन्तु कतिपय लेखकों के अनुसार यह दर्श नामक यज्ञ का एक अंग है (कात्यायन ४११)। इस यज्ञ के विस्तार के लिए ये ग्रन्थ अवलोकनीय हैं, यथा-शतपथ ब्राह्मण २।४१२, तैत्तिरीय ब्राह्मण १।३।१०, २।६।१६, आश्वलायन २।६-७, आपस्तम्ब ११७-१०, कात्यायन ४।१।१-३०, शत० २७, बौधायन ३।१०-११। यह कृत्य उस दिन किया जाता है जब कि चन्द्र का दर्शन नहीं होता, अर्थात् अमावस्या के तीसरे भाग में, जब सूर्य की किरणें वृक्षों के ऊपरी भाग पर रहती हैं। स्थानाभाव से इस यज्ञ का वर्णन नहीं किया जा रहा है। इस यज्ञ को वह गृहस्थ भी कर सकता है जिसने तीन वैदिक अग्नियों नहीं स्थापित की हैं। ऐसा गृहस्थ अमावस्या के दिन गृह्य अग्नि में आहुतियाँ देता है (देखिए आश्वलायनश्रौतसूत्र २७।१८, संस्कारकौस्तुभ, संस्कारप्रकाश आदि)। गौतम (५।५) का कहना है कि प्रत्येक गृहस्थ को कम-से-कम जल-तर्पण अवश्य करना चाहिए, उसे यथाशक्ति भोजन आदि की भी आहुतियाँ देनी चाहिए। मनु ने भी दैनिक पितृतर्पण की बात चलायी है (२।१७६) । १७. देखिए आश्वलायन (११८७), तैत्तिरीय ब्राह्मण (३।५।९), तैत्तिरीय संहिता (१॥६॥४॥१) एवं आपस्तम्ब (४११२)। १८. अमावास्याया यदहश्चन्द्रमस न पश्यन्ति तदहः पिण्डपितृयज्ञं कुरुते (आप० १७.१-२)। रुखवत ने प्याल्या की है-"पिण्डः पितणां यज्ञः"; सत्याषाढ की टीका में महादेव ने कहा है-"पिण्ड: पिण्डदानेन सहितः पितृभ्यो देवेन्यो यज्ञो होमः स पिण्डपितृयज्ञः" (२७, पृ० २४५)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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