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मश्वमेव बस
के विषय में प्रशस्ति-गान करता है। पूरे साल भर तक प्रति दिन सविता की इष्टि के उपरान्त होता आहवनीयाग्नि के दक्षिण में स्वर्णासन पर बैठकर पुत्रों एवं मन्त्रियों से युक्त अभिषिक्त राजा को,पारिप्लव नामक उपाख्यान सुनाता है। इसी प्रकार अन्य पुरोहित मी राजा एवं उसके पूर्वजों के कार्यों एवं कौतियों की स्तुति करते हैं (आप० २०१६।१७)। जब तक अश्वमेघ समाप्त नहीं हो जाता तब तक अध्वर्यु राजा बना रहता है, और राजा कहता है-“हे ब्राह्मणो एवं सामन्तो, यह अध्वर्यु आपका राजा है, जो सम्मान आप मुझे देते हैं उसे आप इसे दें..." (आप० २०१३।१-२)। आश्वलायन (१०।७।१-१०), शतपथब्राह्मण (१३।४।३) एवं शांखायन (१६।२) ने पारिप्लव के विषय में विस्तारपूर्वक लिखा है। पारिप्लव में माँति-भांति की गाथाएँ गायी जाती हैं। दस दिनों तक पृथक् रूप से प्रति दिन विभिन्न गाथाएँ कही जाती हैं और यह क्रम दस-दस दिनों के चक्र में पूरे साल भर तक चलता जाता है। दस दिनों के कृत्य निम्न प्रकार से किये जाते हैं।
प्रथम दिन होता कहता है-"मनु विवस्वान् के पुत्र थे, मानव उनकी प्रजा हैं", तदनन्तर होता यज्ञ-कक्ष में बैठे गृहस्थों की ओर संकेत कर कहता है-"(मनु की प्रजा के रूप में मानव लोग) यहाँ बैठे हैं।” इसके पश्चात् वह ऋग्वेद की कोई ऋचा पढ़ता है और कहता है-"आज वेद ऋचाओं का वेद है।" दूसरे दिन वह कहता है-“यम विवस्वान् का पुत्र है, पितृ-गण उसकी प्रजा हैं।" ऐसा कहकर वह वहाँ पर एकत्र हुए बड़े बूढ़ों की ओर संकेत करता है और यजुर्वेद के एक अनुवाक का वाचन करता है। तीसरे दिन वरुण एवं गन्धर्व लोगों का सुन्दर व्यक्तियों को ओर संकेत करके वर्णन होता है, और अथर्ववेद को कुछ ऐसी ऋचाओं का वाचन होता है जिनका सम्बन्ध रोगों एवं उनकी
ओषधियों से होता है। चौथे दिन आख्यान का वर्णन सोम, विष्णु के पुत्र एवं अप्सराओं से (सुन्दर नारियों की ओर संकेत करके) सम्बन्धित होता है और आंगिरस वेद की इन्द्रजाल-सम्बन्धी कुछ ऋचाएँ पढ़ी जाती हैं। पांचवें दिन अर्बुद काद्रवेय एवं सर्पो से (उन आगन्तुकों की ओर संकेत करके जो सर्प-विद्या या विष-विद्या से परिचित होते हैं) सम्बन्धित आख्यान कहा जाता है। छठे दिन कुबेर वैश्रवण तथा उसकी प्रजा राक्षसों का (दुष्ट प्रकृति वालों की ओर संकेत करके ) वर्णन होता है और पिशाच-वेद (?) का पाठ किया जाता है। सातवें दिन का आख्यान असित घान्वन, उसकी प्रजा (असुर लोग) तथा असुर-विद्या से सम्बन्धित होता है। आठवें दिन मत्स्य सामद, उसकी प्रजा (जल के जीव), मत्स्य देश के पुंजिष्ठों (मछुओं) तथा पुराण-वेद के कुछ पुराण-अंशों का वर्णन किया जाता है। नवें दिन का आख्यान विपश्चित् के पुत्र ताय, उसकी प्रजा (पक्षी-गण) तथा इतिहास-वेद से सम्बन्धित होता है। दसवें दिन धर्म इन्द्र, उसकी प्रजा (देवता लोगों तथा दक्षिणा न ग्रहण करने वाले श्रोत्रिय लोगों) तथा सामवेद की कुछ ऋचाओं (साम-गानों) से सम्बन्धित आख्यान होता है। साल भर तक प्रत्येक दिन सायंकाल घृति नामक चार आहुतियाँ आहवनीय अग्नि में डाली जाती हैं (कात्या० २०१३।४)। प्रथम दिन वाजसनेयी संहिता (२२१७-८) के पाठ के साथ प्रक्रम
४. आश्वलायन (१०।७।१-२) मे पारिप्लव के वाचन के विषय में यह लिखा है-"प्रथमेहनि मनुवैवस्वतस्तस्य मनुष्या विशस्तहम आसत इति गृहमेषिन उपसमानौताः स्युस्तानुपविशत्यूचो वेदः सोऽयमिति सूक्तं निगवेत् । द्वितीयेहनि यमों वैवस्वततस्य पितरो विशस्त इम मासत इति स्थविरा उपसमानीताः स्युस्तानुपविशति यजुर्वेदो बेदः सोयमित्यनुवाकं निगवेत्।" बेदान्तसूत्र (३।४।२३-२४) में निष्कर्ष आया है कि वे आख्यान जो उपनिषद् में पाये जाते हैं (यषा-कौवीतकी उपनिषद (३१) में पाये जाने वाले इन एवं प्रतईन के आख्यान, छ.न्दोग्योपमिष (११)काजामभुति मामक आल्यान तबाहवारण्यकोपनिषद (४।५।१) के याज्ञवल्क्य एवं उनकी पत्नियों के आयाम) पारिप्लब में सम्मिलित नहीं किये जाते।
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