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धर्मशास्त्र का इतिहास
पुरोहितों को भी विभिन्न अंगों के भाग दिये जाते हैं। पशुबन्ध का कृत्य भी बहुत लम्बा है। विस्तार में जाना यहाँ अनपेक्षित है।
काम्याः पशवः -- जिस प्रकार बहुत-सी काम्येष्टियाँ होती हैं उसी प्रकार सम्पत्ति, ग्रामों, यश आदि के लाभार्थ विभिन्न पशु बलि दिये जाते हैं, यथा समृद्धि के लिए श्वेत पशु वायु को, ग्राम के लिए कोई पशु वायु नियुत्वान् को, वाक्पटुता के लिए भेड़ सरस्वती को ( तै० सं० २१ २२६ ) । काम्य पशुओं के विषय में विशेष जानकारी के लिए देखिए तैत्तिरीय ब्राह्मण (२।८।१-९), आपस्तम्ब ( १९ | १६ | १७ ) एवं आश्वलायन ( ३।७ एवं ३१८ | १ ) । इन सभी प्रकार के यज्ञों में निरूढ - पशुबन्ध की ही विधि लागू होती है ।
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