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धर्मशास्त्र का इतिहास
गृहस्थ को चाहिए कि वह अतिथि को (यदि वह आया हो तो) खिलाये और फिर बच्चों एवं नौकरों से घिरकर स्वयं भोजन करे, किन्तु अधिक न खाय और फिर सो जाय। दक्ष (२०७०।७१) का कहना है कि सन्ध्या होने के उपरान्त (गृहस्थ को) होम करना चाहिए, तब खाना चाहिए, घर-गृहस्थी के अन्य कार्य करने चाहिए, इसके उपरान्त वेद का कुछ अंश दुहराना चाहिए और दो प्रहरों (६ घंटों) तक सोना चाहिए, गृहस्थ को चाहिए कि वह पहले के पढ़े हुए वेद को प्रथम एवं अन्तिम प्रहर में अवश्य दुहराये।
निद्रा गौतम (२।१३ एवं ९।१०), मनु (४१५७, १७५-१७६), याज्ञवल्क्य (१।१३६), विष्णुपुराण (३॥११॥ १०७-१०९) आदि तथा निबन्धों ने सोने के विषय में (यथा सिर कहाँ रहे, शय्या कैसी रहे, कहाँ सोया जाय, कौन सा वेदांश पढ़ा जाय आदि) बहुत-से नियम बतलाये हैं। हम यहां विष्णुधर्मसूत्र (अध्याय ७०) का वर्णन उपस्थित करते हैं-"भींगे पैर नहीं सोना चाहिए. सिर उसर या पश्चिम या शरीर के अन्य अंगों से नीचे न रहे. नग्न नहीं सोना चाहिए, छत की धरन की लम्बाई के नीचे नहीं सोना चाहिए, खुले स्थान में नहीं सोना चाहिए, पलाश वृक्ष की बनी खाट पर नहीं सोना चाहिए और न पंच प्रकार की लकड़ियों (उदुम्बर-गूलर, वट, अश्वत्थ-पीपल, प्लक्ष एवं जम्बू) से बनी खाट पर ही सोना चाहिए, हाथी द्वारा तोड़े गये पेड़ की लकड़ी एवं बिजली से जली हुई लकड़ी के पर्यक पर भी नहीं सोना चाहिए, टूटी खाट पर भी नहीं सोना चाहिए, जली खाट तथा घड़े से सींचे गये पेड़ की खाट पर भी नहीं सोना चाहिए। श्मशान या कब्रगाह में, जिस घर में कोई न रहता हो उसमें, मंदिर में, दुष्ट लोगों की संगति में, नारियों के मध्य में, अनाज पर, गौशाला में. बड़े लोगों (बुजुर्गों) की खाट पर, अग्नि पर, मूर्ति पर, भोजनोपरान्त बिना मुंह एवं हाथ धोये, दिन में, सायंकाल, राख पर, गन्दे स्थान पर, भीगे स्थान पर और पर्वत पर नहीं सोना चाहिए।" अन्य विस्तृत वर्णन के लिए देखिए स्मृत्यर्थसार (पृ०७०), गृहस्थरत्नाकर (पृ० ३९७-३९९), स्मृतिमुक्ताफल (आह्निक, पृ० ४५३-४५८), आह्निकप्रकाश (पृ० ५५६-५५८) आदि। दो-एक बातें निम्नोक्त हैं। स्मृत्यर्थसार के अनुसार सोने के पूर्व अपने प्रिय देवता को माथा नवाना चाहिए और सोते समय पास में बांस का डण्डा रखना चाहिए। स्मृतिरल ने लिखा है कि आँख के रोगी, कोढ़ी तथा उनके साथ जो यक्ष्मा, दमा, खांसी या ज्वर से आक्रान्त हों या जन्हें मृगी आती हो उनके साथ एक ही बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए। रत्नावली (स्मृतिमुक्ताफल, आह्निक, पृ० ४५७ में उद्धृत) के अनुसार शय्या के पास में जलपूर्ण घड़ा होना चाहिए, वैदिक मन्त्र बोलने चाहिए, जिससे कि विष से रक्षा हो, रात्रि-सम्बन्धी वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करना चाहिए, घनघोर सोनेवाले पांच महापुरुषों, यथा-अगस्ति, माधव, मुचकुन्द, कपिल एवं आस्तीक के नाम स्मरण करने चाहिए, विष्णु को प्रणाम करके तब सोना चाहिए। वृद्ध-हारीत (८।३०९-३२०) ने लिखा है कि यति, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, विधवा को खाट पर न सोकर पथिवी पर मगचर्म, कम्बल या कुश बिछाकर सोना चाहिए।
स्त्री-प्रसंग-रात्रि में सोने के विषय में चर्चा करते समय स्मृतियों एवं निबन्धों ने पति-पत्नी के संभोग के विषय में प्रभूत चर्चा कर रखी है। संभोग के उचित कालों के विषय में हमने कुछ नियमों की चर्चा पहले भी कर दी है (अध्याय ६, गर्भाधान)। गौतम (५।१-२ एवं ९।२८-२९) और आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।१।१।१६-२३) का कहना है कि गृहस्थ को उचित दिनों में, या वर्जित दिनों को छोड़कर कभी भी, या जब पत्नी की इच्छा हो, उसके पास जाना चाहिए; दिन में या जब पत्नी बीमार हो, संभोग नहीं करना चाहिए; जब पत्नी ऋतुमती हो तब उससे दूर रहना चाहिए, यहाँ तक कि आलिंगन भी नहीं करना चाहिए। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।१।१।१९), वसिष्ठधर्मसूत्र (१२।२४) एवं याज्ञवल्क्य (१९८१) ने इन्द्र द्वारा स्त्रियों को दिये गये एक वरदान की कथा लिखी है जो तैत्तिरीयसंहिता (२।५।१)
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